Book Title: Shramanvidya Part 3
Author(s): Brahmadev Narayan Sharma
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 400
________________ प्रस्तावना प्रस्तुत 'प्रमाण प्रमेय समुच्चयः' नामक लघुग्रन्थ के अध्ययन से भी स्पष्ट है कि इसकी तथा प्रमेयरत्नमाला की प्रतिपादन की भाषा और शैली दोनों में बहुत साम्य है, अतः निश्चित रूप से दोनों के कर्ता १२ वी. शती के आचार्य लघु अनन्तवीर्य हैं। जिनका दिगम्बर जैन परम्परा के जैन दार्शनिक ग्रन्थों के लेखकों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । अनन्तवीर्याचार्य ने प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखन में अतिसंक्षेप शैली का उपयोग करके न्याय, वैशेषिक, जैन, सांख्य, बौद्ध, मीमांसक और लोकायत ( चार्वाक ) - इन दर्शनों में प्रतिपादित मात्र 'प्रमाण- प्रमेय' विषय का बहुत ही सरल और सहज भाषा में प्रतिपादन किया है। विद्वान् लेखक ने तद्-तद् दर्शनों के प्रतिनिधि ग्रन्थों के सूत्रों को भी उद्धृत किया है। इसमें प्रस्तुत ग्रन्थ की प्रामाणिकता भी सिद्ध होती है । विषय की दृष्टि से न्यायशास्त्र के चार अंग हैं - १. प्रमाणसाधन, २. प्रमेय – वस्तु, ३. प्रमिति - फल, ४. प्रमाता - परीक्षक । इनमें से प्रमुख दर्शनों में प्रतिपदित प्रमाण और प्रमेय – इन दो अंगों का अतिसंक्षेप में ग्रन्थकार ने विवेचन प्रस्तुत किया है । दार्शनिक क्षेत्र में इन विषयों का तुलनात्मक और समन्वयात्मक अध्ययन की दृष्टि से इस लघुग्रन्थ की महत्ता और उपयोगिता स्वयं सिद्ध है। मेरे शोध का विषय भी दार्शनिक समन्वय की दृष्टि: जैन नयवाद' है, अतः प्रस्तुत ग्रन्थ का सम्पादन कार्य मेरे लिए विशेष महत्त्व रखता है। प्रस्तुत ग्रन्थ के अन्त में परिशिष्ट के रूप में सभी दर्शनों का सारभूत समन्वयभी प्रस्तुत किया है। हस्तलिखित पाण्डुलिपि का परिचय जैसा कि पूर्व में यह सूचित किया गया है कि अजमेर से प्राप्त इस ग्रन्थ की हस्तलिखित पाण्डुलिपि की जीराक्स प्रति के आधार पर इसका सम्पादन- कार्य किया गया है। ग्रन्थ चाहे छोटा हो या बड़ा, सावधानी पूर्वक पाठ संशोधन, प्रतिलिपि आदि कार्य काफी श्रमसाध्य होते हैं। प्रस्तुत पाण्डुलिपि पन्द्रह पत्रों अर्थात् (अट्ठाईस पृष्ठों) में दोनों ओर कुछ-कुछ स्पष्ट और अस्पष्ट अक्षरों में लिखित है । ९×६ इंच के प्रत्येक पत्र में आठ पंक्तियाँ हैं। मुझे प्रसन्नता है कि श्रमणविद्या संकाय की इस गौरव पूर्ण 'श्रमणविद्या' नामक पत्रिका के माध्यम एवं आ. गुरूवर्य प्रो. दयानन्द भार्गव तथा प्रो. ब्रह्मदेव नारायण शर्मा एवं पूज्य पिताश्री डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी की प्रेरणा से ग्रन्थ के सम्पादन और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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