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परिचिति
माता-पिता अपने पुत्र को देखकर प्रसन्न हुए। तब तक उनकी आयु पूरी हो चुकी थी। उन्होंने मृत्यु क्षण को जान कर बुद्धगुणों को स्मरण करते हुए मर कर देवलोक के कनकविमान में उत्पन्न हुए। महास्थविर ने त्रिरत्न के माहानुभाव को जानकर प्रणाम निवेदन किया। तदनन्तर त्रिपिटक विनय, सुत्त एवं अभिधर्म, नौ अंगो, चौरासी हजार धर्मस्कन्धों को सद्धर्म बताया। चार मार्गस्थ एवं चार फलस्थ भिक्षुसंघ को स्मरण किया। इस प्रकार त्रिरत्न बुद्ध, धर्म एवं संघ के स्वरूप को दिखाते हुए प्रणाम निवेदन करते हुए इस गाथा का उद्गीरण किया।
बुद्धे धम्मे च संघो च कतो एको पि अञ्जली ।
पहोमि भवदुक्खग्गिं निब्बापेतुं असेसतो ति ।। इस प्रकार भगवान् बुद्ध के शासन के महत्त्व को प्रतिपादित किया। अपनी आयु को पूर्ण समझकर अनापानसति की भावना करते हुए महाबोधि के निकट जाकर बोधिवृक्ष की पूजा की। तदनन्तर मरणमञ्च पर आसीन हो सम्मुतिमरण को प्राप्त हुए और स्वर्ग लोक के कनक विमान में उत्पन्न हुए। संक्षेप में बुद्धघोष के सम्पूर्ण जीवनवृत्त को यहाँ दर्शाया गया है। अन्त में लेखक ने इन तीन गाथाओं के माध्यम से इच्छा व्यक्त की है
बुद्धघोसस्स निदानं एवं तं रचितं मया । निदानस्स रचनेन पञवा होमि सब्बदा ।। लभेय्यञ्च अहं तस्स मेत्तेय्य समागमं । मेत्तेय्यो नाम सम्बुद्धो तारेति जनतं बहुं ।। यदा मेत्तेय्यतं पत्तो धारेय्यं पिटकत्तयं । तदाहं पञवा होमि मेत्तेय्य उपसन्तिके ति ।।
रचनाकार एवं काल बुद्धघोसुप्पत्ति (बुद्धघोषोत्पत्ति) आचार्य बुद्धघोष की जीवनी के रूप में लिखी गई रचना है। इसके रचियता महामंगल नामक सिंहली भिक्षु थे। महावंस
के प्रथम परिवर्द्धित अंश (चूलवंश) में बुद्धघोष का जीवन-वृत्त दिया गया है। 'बुद्धघोसुप्पत्ति' के वर्णन के साथ इसे मिलाने से यह स्पष्ट हो जाता है कि बुद्धघोसुप्पत्ति का वर्णन चूलवंस के बाद रचित हुआ। अत: महावंस का प्रथम
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