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बुद्धघोसुष्पत्ति
जाना और उनकी वन्दना की। बुद्धदत्त, बुद्धघोष को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए
और उनका नाम जानकर लंका द्वीप जाने का कारण पूछा। तब बुद्ध घोष ने बतलाया कि मैं सिंहल द्वीप बुद्धशासन को सिंहली भाषा से मागधी भाषा में परिवर्तन करने के लिए जा रहा हूँ। बुद्धदत्त ने कहा कि मैं भी इसी कार्य के लिए गया था लेकिन मैं केवल जिनालंकार, छदन्तधातु, बोधिवंस आदि ग्रन्थों का ही मागधी भाषा में परिवर्तन कर सका हूँ। अट्ठकथा तथा टीका आदि का परिवर्तन नहीं कर पाया हूँ। तुम वहाँ जाकर तीन पिटकों की अट्ठकथाओं का मागधी भाषा में परिवर्तन करो-ऐसा कहकर उन्हें इन्द्र के द्वारा दिया गया हरीतकी और लोहे से युक्त लेखनी तथा एक पत्थर दिया। तदन्तर बुद्धघोष ने उनसे आज्ञा लेकर लंका द्वीप की ओर प्रस्थान किया। इस प्रकार बुद्धघोष के लंकाद्वीपगमन का वर्णन यहाँ अत्यन्त रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
पंचम परिच्छेद इस अध्याय में बुद्धघोष का लंका पहुँचना और वहाँ पर दो ब्राह्मणदासियों के झगड़े में साक्षी बनने की चर्चा की गई है। कुछ दिन लंका में निवास के अनन्तर बुद्धघोष ने एक दिन दो ब्राह्मणदासियों को देखा, जो घाट पर पानी लेने आयी थीं और आपस में झगड़ा करने लगी। बुद्धघोष ने उनके विवाद को सुनकर सोचा कि यहाँ अन्य कोई नहीं है। ये दोनों स्त्रियाँ अपने-अपने स्वामी को अवश्य कहेंगी कि वहाँ पर केवल वही स्थविर थे। वे हमसे भी अवश्य पूछेगे कि इन दोनों में से किसने क्या कहा है अत: इनकी बातों को मुझे लिख लेना चाहिए। ऐसा सोचकर उन्होंने दोनों की बातों को लिख लिया। वे दासियाँ जाकर अपने स्वामी को सारी बातें बतायी। तदनुसार वे सब राजा के यहाँ न्याय के लिए गये। राजा ने कहा कि जिस समय तुम झगड़ा कर रही थी उस समय वहाँ कोई था या नहीं। दासियों ने स्थविर के बारे में कहा कि केवल स्थविर ही वहाँ था। राजा ने स्थविर से पूछने के लिए दूत भेजा जिसे लिखित बयान स्थविर ने सौप दिया। जिसे देखकर राजा ने पूछा कि क्या तुमने ऐसा कहा है जिसे उन लोगों ने स्वीकार किया। तदनन्तर राजा ने जिसका घट नहीं टूटा था उसे दण्ड दिया। राजा ने उस स्थविर को देखने की इच्छा व्यक्त की पर ब्राह्मण ने मिथ्यादृष्टि के कारण कहा कि वह स्थविर वाणिज्य के लिए यहाँ आया है अत: यह आपके अनुरूप नहीं होगा कि उसको देखें और बातचित करें। राजा उस ब्राह्मण की बात सुनकर स्थविर के गुणों से प्रभावित हुआ और दो गाथाओं के माध्यम से स्थविर के गुणों की प्रशंसा की।
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