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काशी और जैन श्रमण परम्परा
डॉ. सुरेशचन्द्र जैन
दर्शन विभागाध्यक्ष, श्री स्याद्वादमहाविद्यालय, वाराणसी
काशी विश्व की प्राचीनतम धार्मिक एवं सांस्कृतिक प्रसिद्ध नगरी है। भारतीय संस्कृति की दो प्रमुख धाराओं ब्राह्मण परम्परा और श्रमणपरम्परा की दृष्टि से इस प्राचीन नगरी का महत्वपूर्ण स्थान है। जहाँ तक हिन्दूधर्म, जिसका मूलत: सम्बन्ध ब्राह्मण या वैदिक परम्परा से है, का और काशी का प्रश्न है तो अति प्राचीन काल में इसका अस्तित्त्व काशी में नहीं था। इस सन्दर्भ में प्रसिद्ध इतिहासज्ञ डॉ. मोतीचन्द्र जी का मत है ".... इतिहास से हमें पता चलता है कि हिन्दूधर्म से बनारस का सम्बन्ध बहुत बाद की घटना है, क्योंकि मनुस्मृति आदि ग्रन्थों में तो काशी की साधारण सी चर्चा है। बौद्ध जातकों में वाराणसी की धार्मिक घटनाओं के बदले काशी की बहुत सी बातों पर प्रकाश डाला गया है। वास्तव में उस प्राचीन युग में काशी का सनातन आर्यधर्म से तो कोई विशेष सम्बन्ध नहीं था। इसमें सन्देह नहीं कि काशी वासी धार्मिक कट्टरता के पक्षपाती न थे, दूसरी ओर वे विचार स्वतन्त्रता के पक्षपाती थे तथा उस देश की मूल धाराओं का जिनमें शिव और यक्ष-नाग पूजा मुख्य थी, काशी में अधिक प्रचार था!"
डॉ. मोतीचन्द्र ने काशी का इतिहास नामक पुस्तक में प्राचीन काशी का सामाजिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक सर्वेक्षण कर जो तथ्य प्रस्तुत किए हैं. वे जैन-बौद्ध साहित्य के आधार पर भी आधारित हैं।
जैन श्रमणपरम्परा, जिसका आदि स्रोत प्रथम तीर्थकर आदिनाथ या वषभदेव से सम्बद्ध है। एक ओर ऋषभदेव इस परम्परा में आदिदेव के रूप में स्वीकृत हैं तो दूसरी ओर शिव को काशी का अधिष्ठातृ-देव माना जाता है। शिव को रामायण में
१. डॉ, मोती चन्द्र, काशी का इतिहास, पृष्ठ-१
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