________________
(१०)
के विवरण इनमें प्राप्त हैं। आचरिय धम्मपाल द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थों के सन्दर्भ में इन दोनों ग्रन्थों द्वारा दिये गये. विवरणों में पर्याप्त साम्य विद्यमान हैं। गन्धवंस में थेरीगाथा-अट्ठकथा तथा पेतवत्थु-अट्ठकथा का उल्लेख नहीं हुआ है एवं सासनवंस में अङ्गुत्तरनिकायट्ठकथाटीका, बुद्धवंसट्ठकथाटीका और अभिधम्मट्ठकथा की लीनत्थवण्णना नामक अनुटीकादि के नाम प्राप्त नहीं है। साथ ही इसमें अङ्गुत्तरनिकाय की टीका के लेखक, समन्तपासादिका-अट्ठकथा पर सारत्थदीपनी नामक टीका के रचयिता सारिपत्त थेर बताये गये हैं"सारत्थदीपनि नाम विनयटीकं, अगुत्तरनिकायटीकञ्च परक्कमबाहुरञा याचितो सारिपुत्तथेरो अकासि”। सासनवंस में अभिधम्म की मूलटीका पर अन्टीका लिखनेवाले का नाम भी आचरिय धम्मपाल ही दिया गया है, जबकि गन्धवंस में अभिधम्मट्ठकथा की लीनत्थवण्णना नामक अनुटीका का इन्हें रचयिता कहा गया है। लगता है कि ऐसे भ्रम नाम-साम्य के कारण ही हुए हैं।
सासनवंस में आचरिय धम्मपाल को पदरतित्थ-निवासी बताया गया है । यह स्थान दमिळ (तमिल) राष्ट्र में स्थित था— “सो च आचरियधम्मपालथेरो सीहळदीपस्स समीपे दमिळरट्ठे पदरतित्थम्हि निवासितत्ता सीहळदीपे येव सङ्गहेत्वा वत्तब्बो'। पदरतित्थ बदरतित्थ ही है। यह भारत के दक्षिण-पूर्वी समुद्र तट पर मद्रास से थोड़ा दक्षिण की ओर स्थिर है। अतः इससे यही ज्ञात होता है कि जन्मत: वे तमिल थे और उनका लेखन-कार्य दक्षिण भारत में सम्पन्न हुआ था। उनके ग्रन्थों के निगमन-वाक्य से यही प्रतीत होता है कि ये काञ्चीपुर (काञ्जीवरम्) के निवासी थे—“इति बदरतित्थ-महाविहारवासिना तिपिटकपरियत्तिधरेन.....भदन्त-धम्मपालाभिधान-महासामिपदेन विरचितं'' आदि।
पू० भिक्षु सद्धातिस्स ने अपने द्वारा सम्पादित उपासकजिनालङ्कार की भूमिका में यह प्रश्न उठाया है कि विसुद्धिमग्गमहाटीका (परमत्थमञ्जूसा) तथा प्रथम तीन निकाय-दीघ, मज्झिम एवं संयुत्त की अट्ठकथाओं की टीका के लेखक आचरिय धम्मपाल न होकर सच्चसङ्केप के लेखक चुल्लधम्मपाल ही थे ।
१. वहीं।
२. वहीं। ३-४. वहीं। ५. द्रष्टव्य-सच्चसङ्ग्रेप का निगमन-वाक्य, पृ० २५, जर्नल आफ पालि टेक्स्ट सोसायटी,
लन्दन, १९१८।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org