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करता है कि ये गौरवपूर्ण प्राचीन आचार्य है। किन्तु इसके रचयिता को स्पष्टता प्रदान करने के लिए उन्हें 'चुल्लधम्मपाल' के नाम से स्मृत किया गया है। इसे स्पष्ट करना परमावश्यक है। धम्मपाल नाम के कई आचार्य हो गये हैं तथा नाम-साम्य के कारण इन सभी की कृतियों को लेकर विद्धानों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। अत: इस पर समीचीन रूप से विचार करना अत्यन्त आवश्यक प्रतीत होता है। आचार्य धम्मपाल अथवा धर्मपाल के रूप में हमें चार कृतिकार प्राप्त होते हैं और इस सन्दर्भ में इन चारों के सम्बन्ध में निम्नाङ्कित विवरण प्रस्तुत है
(क) अट्ठकथाकार एवं टीकाकार आचरिय धम्मपाल- इन आचरिय धम्मपाल का उल्लेख गन्धवंस ग्रन्थ में आया है और वहाँ पर इन्हें जम्बुदीप अर्थात् भारत का निवासी बताया गया है। साथ ही वहाँ पर उन्हें इन ग्रन्थों का रचनाकार कहा गया है- नेत्तिपकरण-अट्ठकथा, इतिवृत्तक-अट्ठकथा, उदानट्ठकथा, चरियापिटकट्ठकथा, थेरगाथाट्ठकथा, विभानवत्थु की विमलविलासिनी नामिका अट्ठकथा, विसुद्धिमग्ग की परमत्थमञ्जूसा नामक टीका, दीघनिकायादि चार निकायों की अट्ठकथा की लीनत्थपकासिनी नामिका टीका, नेत्ति-अट्ठकथा की टीका, बुद्धवंस-अट्ठकथा की परमत्थदीपनी नामक टीका, अभिधम्मट्ठकथा की लीनत्थवण्णना नामक टीका। इस प्रकार उन्हें इन चौदह ग्रन्थों का रचयिता कहा गया है। वहाँ पर स्पष्ट उल्लेख है- “इमे चुद्दसमत्ते गन्धे अकासि'। अर्थात् इन चौदह ग्रन्थों की उन्होंने रचना की ।
_सासनवंस के अनुसार वे इतिवृत्तक-अट्ठकथा, उदानट्ठकथा, चरियापिटकट्ठकथा, थेर-थेरीगाथाट्ठकथा, विमानवत्थुट्ठकथा, पेतवत्थुट्ठकथा, नेत्ति-अट्ठकथा, विद्धिमग्ग की महाटीका, दीघनिकायट्ठकथा की टीका, मज्झिमनिकायट्ठकथा की टीका, संयुत्तनिकायट्ठकथा की टीका के लेखक कहे गये हैं।
___ यद्यपि गन्धवंस तथा सासनवंस उन्नीसवीं सदी के ग्रन्थ हैं, तथापि त्रिपिटक के काल से लेकर आधुनिक युग तक के पालि-ग्रन्थों एवं ग्रन्थकारों १. अभिधम्मत्थसङ्गह की विभाविनीटीका, रोमन संस्करण, पालि टेक्स्ट सोसायटी, लन्दन,
१९८९। २. गन्धवंस, पृ० ६०, रोमन संस्करण, जर्नल आफ पालि टेक्स्ट सोसायटी, लन्दन, १८८६। ३. वहीं, पृ०६६। ४. वहीं, पृ०६०। ५. सासनवंस, पृ० ३१, नालन्दा संस्करण, १९६१।
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