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महासंघ का आयोजन कौशाम्बी में किया तथा दीपवंस ग्रन्थ में प्राप्त विवरणानुसार इस महासङ्गीति के भिक्षुओं ने बुद्ध-शासन को विपरीत करते हुए मूलसंघ में भेद उत्पन्न कर एक नये संघ की ही स्थापना कर डाली एवं मूलसंघ को भिन्दित कर सूत्रों का एक नवीन संग्रह प्रस्तुत कर दिया। उस समय स्थित विनय और पाँच निकायों के सूत्रों के क्रम को उन्होंने बदल दिया तथा उनमें अपने द्वारा रचित सन्दर्भो को जोड़ दिया।
इस प्रकार उस समय स्थविरवादी और महासांघिक—ये दो निकाय स्थिति में आये तथा आगे चलकर बौद्ध-संघ १८ निकायों में विभाजित हो गया। कथावत्थु की अट्ठकथा में इन १८ निकायों के अतिरिक्त ९ और निकायों के नाम भी उपलब्ध होते है । वसुमित्र, भव्य एवं विनीतदेव आदि के द्वारा प्रस्तुत एक अन्य परम्परा के अनुसार यह संघभेद विनय-विरुद्ध दस वस्तुओं के आधार पर न होकर महादेव द्वारा प्रस्तुत पाँच वस्तुओं के कारण हुआ था। - तृतीय सङ्गीति सम्राट अशोक के संरक्षत्व में पाटलिपुत्र में हुई। उस समय अशोक द्वारा बौद्ध धर्म को आश्रय प्रदान करने के कारण अन्य तैर्थिक भी संघ में लाभ हेतु प्रविष्ट हो गये थे और वे नाना प्रकार के अपने मतवादों और भिन्न प्रकार के आचरणों से संघ को दूषित कर रहे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि सात वर्षों तक पाटलिपुत्र के अशोकाराम में उपोसथ भी नहीं हो पाया। मोग्गलिपुत्त तिस्स स्थविर से परामर्श कर संघ में छिपकर प्रविष्ट साठ सहस्र तैर्थिकों को अशोक ने संघ से निष्कासित कर दिया और तृतीय संगीति का पाटलिपुत्र में ही आयोजन किया गया । अट्ठसालिनी नामक अट्ठकथा में कथावत्थु नामक अभिधम्मपिटक के ग्रन्थ के बुद्धवचन होने के बारे में यह पूर्वपक्ष दिया गया है कि बुद्ध के परिनिर्वाण के २१८ वर्ष पश्चात् जब इसकी रचना मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा हुई थी तो इसे क्यों बुद्धवचन माना जाता है । १. दीपवंस पृ० ३६, रोमन संस्करण, १८७९ :
“महासङ्गीतिका भिक्खू विलोमं अकंसु सासनं। भिन्दित्वा मूलसङ्घ अजं अकंसु सर्छ ।। अज्ञथा सङ्गहितं सुत्तं अञथा अकरिंसु ते।
अत्थं धम्मं च भिन्दिंसु ये निकायेसु पञ्चसु'। २. कथा० अ०, पृ० २-५, रोमन संस्करण, १८८९ । ३. पाण्डे, गोविन्दचन्द्र, बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास, पृ० १७७-१८०, १९७६। ४. समन्तपासादिका १, पृ० ४६-५३। ५. अट्ठ०, पृ० ४।
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