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शौरसेनी प्राकृत साहित्य के आचार्य एवं उनका योगदान
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यह एक महनीय और बृहद् ग्रन्थ है। इसमें जीव को अनादि काल से बद्ध कर्मों से मुक्त होने का उपाय बतलाया गया है। इसमें दर्शनलब्धि, चारित्रलब्धि, और क्षायिक चारित्र-ये तीन अधिकार हैं। ४. क्षपणासार
यह गोम्मटसार का उत्तरार्ध जैसा है। इसमें ६५३ गाथायें हैं। कर्मों के क्षय करने की विधि का इसमें विशद और सांगोपांग निरूपण है। १२. सिद्धान्तिदेव मुनि नेमिचन्द्र और उनकी द्रव्यसंग्रह
सिद्धान्तिदेव नेमिचंद मुनि द्वारा लिखित दव्वसंगहो (द्रव्यसंग्रह) नामक ५८ गाथाओं वाला लघु ग्रन्थ 'गागर में सागर' की उक्ति को चरितार्थ करता है। इसमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश, काल तथा कर्म, तत्त्व, ध्यान आदि विविध विषयों का अच्छा विवेचन है। जिस तरह इसमें जैन-धर्म-दर्शन के प्रमुख तत्त्वों को सारगर्भित, सुबोध शैली में प्रस्तुत किया गया है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। इसी कारण यह जैन सिद्धान्त का प्रतिनिधि और लोकप्रिय लघुग्रन्थ है। इस पर अनेक टीका ग्रन्थ उपलब्ध हैं। शौरसेनी साहित्य के अन्य आचार्य
इस प्रकार शौरसेनी प्राकृत साहित्य के उपर्युक्त आचार्यों के अतिरिक्त अनेक आचार्यों द्वारा रचित ऐसे ग्रन्थ भी हैं, जिनके लेखक का नाम अज्ञात है। ऐसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों में 'पंचसंग्रह' प्रमुख है। पंचसंग्रह नामक यह विशाल ग्रन्थ जीवसमास, प्रकृतिस्तव, कर्मबन्धस्तव, शतक और सत्तरा- इन पांच प्रकरणों में विभक्त है। इसमें ४४५ मूल गाथायें, ८६४ भाष्य गाथायें, इस प्रकार कुल १३०९ गाथायें हैं। इसका काफी अंश प्राकृत गद्य में भी है। इसी के आधार पर आचार्य अमितगति (११वीं शती) ने संस्कृत पञ्चसंग्रह की रचना की।
शौरसेनी प्राकृत के अन्य जिन आचार्यों की कृतियाँ उपलब्ध एवं प्रकाशित हैं, उनमें पद्मनन्दि मुनि (११वी शती) द्वारा विरचित जंबुद्दीवपण्णत्तिसंग्रहो (२३८९गाथायें) तथा धम्मरसायण १९३गाथायें, देवसेनसूरी (१०वी शती) द्वारा लिखित लघुनयचक्र, आराधनासार (११५ गाथायें), दर्शनसार (५१गाथायें), भावसंग्रह (७०१गाथायें) तथा तत्त्वसार (७४गाथायें), माइल्ल-धवल कृत दव्वसहावपयास (द्रव्यस्वभावप्रकाश-बृहद् नयचक्र) (४२३गाथायें), पद्मसिंह मुनि
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