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श्रमणविद्या-३
गई ५७ फुट ऊँची बाहुबलि स्वामी की भव्य एवं विशाल मूर्ति गोमटेश्वर (चामुण्डराय का देवता) नाम से विख्यात हई। तथा गोम्मट उपनामधारी इन्हीं चामुण्डराय के लिए नेमिचन्द्राचार्य ने गोम्मटसार नामक ग्रन्थ की रचना की।
यह ग्रन्थ जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड- इन दो भागों में विभक्त है, जिसमें क्रमश: ७३४ और ९६२ गाथायें हैं। जैसा कि पहले ही कहा गया है कि गोम्मटसार षट्खण्डागम की परम्परा तथा उसी के विषयों का संक्षेप में विवेचन करने वाला ग्रन्थरत्न है। इसके प्रथम जीवकाण्ड में महाकर्म प्राभृत के सिद्धान्त सम्बन्धी जीवस्थान, क्षुद्रकबंध, बन्धस्वामित्व, वेदना और वर्गणा-इन पाँच खण्डों के विषयों का वर्णन है। और गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, चौदह मार्गणा और उपयोग आदि बीस प्ररूपणाओं में जीव की अनेक अवस्थाओं का प्रतिपादन किया गया है।
इस ग्रन्थ के द्वितीय कर्मकाण्ड खण्ड में प्रकृतिसमुत्कीर्तन, बन्धोदयसत्त्व, सत्त्वस्थानभंग, त्रिचूलिका, स्थानसमुत्कीर्तन, प्रत्यय भावचूलिका, विकरणचूलिका, और कर्मस्थितिबंध-इन नौ अधिकारों का विवेचन है। गोम्मटसार पर अनेक आचार्यों की विभिन्न टीकायें उपलब्ध हैं। २. त्रिलोकसार
यह १० १८ गाथाओं में निबद्ध करणानुयोग का ग्रन्थ है। यह चामुण्डराय के प्रतिबोध के लिए लिखा गया था। यह ग्रन्थ यतिवृषभाचार्य कृत तिलोयपण्यत्ति तथा आ. अकलंकदेवकृत तत्त्वार्थवार्तिक के आधार पर लिखा गया प्रतीत होता है।
इसमें लोक-भवन, व्यंतर, ज्योतिष, वैमानिक एवं मनुष्य (तिर्यक्)इन लोकों का विशद् विवेचन है। ३. लब्धिसार
क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण—ये सम्यदग्दर्शन की प्राप्ति में साधनभूत इन पाँच लब्धियों का ६४९ गाथाओं में कथन करने वाला
१. गोम्मटसार पर जीवप्रदीपिका नामक स्वोपज्ञ वृत्ति, अभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ति द्वारा
लिखित मंदप्रबोधानी टीका, केशवर्णी द्वारा लिखित कनडवृत्ति तथा पं. टोडरमल विरचित सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका नामक विशाल टीका-इस तरह इस पर व्याख्या साहित्य उपलब्ध है।
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