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शौरसेनी प्राकृत साहित्य के आचार्य एवं उनका योगदान
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प्रथम आदि अनेक प्रमुख आचार्य, परम्परा और इतिहास दोनों ही दृष्टियों से विशेष महत्वपूर्ण हैं। अत: इनके व्यक्तित्व और कृतित्व का यहाँ परिचय प्रस्तुत है१. आचार्य गुणधर
शौरसेनी प्राकृत साहित्य का जब हम अध्ययन प्रारम्भ करते हैं, तब हमारी सर्वप्रथम दृष्टि आचार्य गुणधर रचित 'कसायपाहुड-सुत्त' पर जाती है। यह उपलब्ध जैन साहित्य में कर्मसिद्धान्त विषयक परम्परा का प्राचीनतम महान् ग्रन्थ माना जाता है। इसके कर्ता आचार्य गुणधर विक्रम पूर्व की प्रथम शती के आचार्य हैं। इनके व्यक्तित्व के विषय में विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं है। इनकी एकमात्र कृति 'कसायपाहुडसुत्त' तथा इसके टीकाकारों के उल्लेखों के आधार पर ही इनके विषय में कुछ जानकारी प्राप्त होती है।
यह उल्लेख्य है कि आचार्य भद्रबाहु और लोहाचार्य के बाद की आचार्य परम्परा में हुए संघनायक-आचार्य अर्हद्बलि (वीर निर्वाण संवत् ५६५) ने नन्दि, वीर, देव, सेन आदि अनेक संघों की स्थापना की थी। इनमें एक 'गुणधर' नामक संघ भी था। इस उल्लेख से यह स्पष्ट है कि 'गुणधर' एक विशाल संघ के प्रभावक आचार्य थे। जयधवलाकार आचार्य वीरसेन ने इन्हें 'वाचक' (पूर्वविद्) उपाधि से विभूषित किया है। इन्हें अंग और पूर्वो का एकदेश ज्ञान आचार्य-परम्परा से प्राप्त हुआ था (तदो अंगपुव्वाणमेगदेतो चेव आइरिय परंपराए आगंतूण गुणहराइरियं संप्पत्तो), जिसके आधार पर उन्होंने इस महान् ग्रन्थ की रचना की। कसायपाहुड की रचनाशैली सुत्तगाहा (गाहासुत्त) के रूप में अतिसंक्षिप्त एवं बीजपद रूप तथा अनन्त अर्थगर्भित है। कसायपाहुड का दूसरा नाम 'पेज्जदोस पाहुड' भी है।
१. इन्द्रनन्दि कृत श्रुतावतार:८५-९५। २. जयधवला भाग१-पृष्ठ८७ ३. एदाओ सुत्तगाहाओ...........कसायपाहुड गाथा१०। ४. अणंतत्थगब्भ-बीजपद-घडिय-सरीरा-जयधवला भाग१-पृष्ठ १२६ ५. (क) पुव्वम्मि पंचमम्मि दु दसमे बत्थुम्मि पाहुडे तदिए।
पेज्जं ति पाहुडम्मि दु हवदि कसायाण पाहुडं णाम ।। कसायपाहुड गाथा १ (ग) तस्स पाहुडस्स दुबे नामधेज्जाणि तं जहा-पेज्जदोसपाहुडेत्ति वि, कसायपाहुडेत्ति विपेज्जदोस. सूत्र २ क. पा. चूर्णि २१।
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