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शौरसेनी प्राकृत साहित्य के आचार्य एवं उनका योगदान
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को ‘संग्रह' अर्थात् ‘पंचत्थिसंगहो' कहा गया है। इसमें सम्यग्दर्शन के विषयभूत जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश-इन पाँच अस्तिकाय द्रव्यों का मुख्यत: विवेचन है।
समयसार के माध्यमसे आचार्य कुन्दकुन्दने आध्यात्मिक क्षेत्र में आत्मतत्व और आध्यात्मिक रूपकी जिस ऊँचाई को छुआ है, वह सम्पूर्ण विश्व साहित्य में दुर्लभ है। इस दृष्टि से समयसार एक अनुपम ग्रन्थरत्न है। जिसमें सम्यग्ज्ञान के आधारभूत स्वद्रव्य और परद्रव्य की गहन विवेचना है।
पवयणसार में ज्ञान-ज्ञेय तत्त्व के साथ ही सम्यक् चारित्र की विशेष व्याख्या है। यह एक सुव्यस्थित रचना वाला एक दार्शनिक ग्रन्थ के साथ-साथ साधक श्रमणों के आचार-विचार संबंधी उपयोगी शिक्षाओं का प्रतिपादक महान् ग्रन्थ भी है। जिसमें दीक्षार्थी साधक के लिए उपयोगी तथा अत्यावश्यक उपदेश भरा हुआ है।
इस तरह आचार्य कुन्दकुन्द ने इन तीनों ही ग्रन्थों में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का आवश्यक विस्तार के साथ सुसम्बद्ध विवेचन करके मुमुक्षुजनों के लिए साक्षात् मोक्षमार्ग प्रदर्शित किया।
णियमसार में भी इसी रत्नत्रय को मोक्ष-प्राप्तिका मार्ग प्रतिपादत किया गया हैं। बारस-अणुवेक्खा में अध्रुव, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, अस्रव, संवर, निर्जरा, धर्म और बोधि—इन वैराग्यवर्धक बारह भावनाओं (अनुप्रेक्षाओं) का वर्णन है। उपदेश-प्रधान आठ पाहुडों में जो उपदेश आ. कुन्दकुन्दने दिया है, उसका प्रधान लक्ष्य श्रमणों को सदा सच्चे आचार में सुदृढ़ रखना है।
आचार्य कुन्दकुन्द के द्वारा रचित ग्रन्थों में चाहे हम पंचत्थिसंगहो पढें, समयपाहुड या पवयणसार पढें-उनके द्वारा वस्तुतत्व का जो प्रतिपादन किया गया है, वह अपूर्व ही है।
अट्ठपाहुड, बारस अणुवेक्खा और भत्तिसंगहो- इनमें क्रमश: रत्नत्रय, वैराग्य और भक्ति आदि विषयों का प्रतिपादन बेजोड़ है। समयपाहुड आदि ग्रन्थों में आ. कुन्दकुन्दने पर से भिन्न तथा स्वकीय गुण-पर्यायों से अभिन्न आत्मा
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