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शौरसेनी प्राकृत साहित्य के आचार्य एवं उनका योगदान
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पाहुड के महान् विशेषज्ञ आचार्य यतिवृषभ ने इस पर छह हजार श्लोकप्रमाण चुण्णिसुत्तों की रचना की। इन चुण्णिसुत्तों के भी स्पष्टीकरण की जब आवश्यकता हुई, तब ‘उच्चारणाचार्य' ने बारह हजार श्लोक प्रमाण ‘उच्चारणा' नामक वृत्ति का निर्माण किया।
इन सबके भी स्पष्टीकरण के लिए शामकुण्डाचार्य ने अड़तालीस हजार श्लोक प्रमाण ‘पद्धति' नामक टीका की विशेष रूप में रचना की। वीरसेनाचार्य के अनुसार जिसमें मूलसूत्र और उसकी वृत्ति का विवरण किया गया हो, उसे पद्धति कहते हैं। इन्द्रनन्दि के अनुसार यह पद्धति प्राकृत, संस्कृत और कर्नाटक भाषा में रची गई टीका विशेष होती थी।
इस पद्धति के बाद तुम्बलूराचार्य ने षटखण्डागम के आरम्भिक पांच खण्डों पर तथा कसायपाहुड पर कर्णाटकी भाषा में ८४ हजार श्लोक प्रमाण 'चूडामणि' नामक बहुत विस्तृत व्याख्या लिखी थी। इस चूडामणि के बाद भी बप्पदेवाचार्य द्वारा भी इस ग्रन्थ पर कोई टीका लिखी गई थी- ऐसा उल्लेख मिलता है किन्तु इसके नाम और प्रमाण का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। इस समय शामकुंडाचार्य रचित 'पद्धति', तुम्बलूराचार्य की चूड़ामणि और वप्पदेव की टीका-इन्हें हम सुरक्षित नहीं रख सके, अतः ये तीनों विशिष्ट टीकायें अब उपलब्ध नहीं हैं।
वस्तुत: द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार प्रत्येक वस्तुओं में परिवर्तन नियमानुसार होता ही रहता है। अतः युग के अनुसार लोगों की स्मरण और ग्रहण शक्ति में भी परिवर्तन आया। अत: सिद्धान्त के विषयों की गहनता और भाषा की कठिनाई ने इस महान् ज्ञान की अविच्छिन्न धारा में बाधा डालना प्रारम्भ किया, तब उपर्युक्त टीकाओं और मूल ग्रन्थ के अनन्त अर्थों को हृदयंगम करके आचार्य वीरसेन (नवीं शती की पूर्वार्ध) और जिनसे (नवीं शती) ने 'मणिप्रवाल-न्याय' से प्राकृत-संस्कृत मिश्रित भाषा में साठ हजार श्लोक प्रमाण 'जयधवला' नामक टीका की रचना करके सरल भाषा में उस महान् अविच्छिन्न आगमज्ञान परम्परा को भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित करके अपने को अमर और सदा के लिए श्रद्धा का पात्र बना लिया।
• १. सुत्तवित्तिविवरणाए पद्धईववएसादो-जयधवला. २. प्राकृत संस्कृत कर्णाटभाषया पद्धतिः परा रचिता-श्रुतावतार १६४. ३. चतुरधिकाशीतिसहस्रग्रन्थरचनया युक्ताम्। __कर्णाटभाषायाऽकृत महती चूड़ामणिं व्याख्याम् ।। श्रुतावतार १६६. ४. श्रुतावतार १७३-१७६.
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