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शौरसेनी प्राकृत साहित्य के आचार्य एवं उनका योगदान
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प्रथम चूर्णिसूत्रकार
इन उल्लेखों से यह सिद्ध है कि आ. यतिवृषभ के गुरु आर्यमंक्षु और नागहस्ति थे। अनेक उत्तरवर्ती आचार्यों द्वारा आ. यतिवृषभ के उद्धरणों, मतों आदि के उल्लेखों से यह सिद्ध है कि वे अपने समय के उच्च आगमवेत्ता प्रमाणिक विद्वान् और दीर्घतपस्वी आचार्य थे। इसीलिए वे अनन्त-गहन-अर्थ गर्भित कसायपाहड जैसे दुरूह और अतिसंक्षेप ग्रन्थ की सुत्तगाथाओं पर संक्षिप्त शब्दावली में महान् अर्थ में चूर्णिसूत्रों की रचना करने में सफल हुए। वस्तुत: इन चूर्णिसूत्रों के अभाव में इन सुत्तगाथाओं का आगम (परम्परा) सम्मत प्रामाणिक अर्थ करना असम्भव था। आ. यतिवृषभ का इसलिए भी अत्यधिक महत्व है कि वे शौरसेनी परम्परा के प्रथम चूर्णिसूत्रकार हैं। धवला में यतिवृषभाचार्य के चूर्णिसूत्रों को वृत्तिसूत्र भी कहा है। जयधवलाकार ने वृत्तिसूत्र का अर्थ बतलाया है- 'सुत्तस्सेव विवरणाए संखित्तसद्दरयणाए संगहिय सुत्तासेसत्थाए वित्तिसुत्तववएसादो' अर्थात् जिसकी शब्द रचना संक्षिप्त हो और सूत्रगत अशेष अर्थों का संग्रह किया गया हो, ऐसे विवरण को वृत्तिसूत्र कहते हैं।
___ यद्यपि अर्धमागधी के अनेकों अंग आगमों पर व्याख्या साहित्य के अन्तर्गत चूर्णिसाहित्य उपलब्ध है और चूर्णिपद की परिभाषा में कहा गया है कि जिसमें महान् अर्थ हो, निपात और उपसर्ग से युक्त हो, गम्भीर हो,अनेक पद समन्वित हो, वह चूर्णिपद हैं। इस तरह चूर्णिपदों के अन्तर्गत बीजसूत्रों की विवृत्यात्मक सूत्र-रूप रचना की जाती है और तथ्यों को विशेषरूप में प्रस्तुत किया जाता है। किन्तु इन चूर्णियों और यतिवृषभ के चूर्णिसूत्रों की शैली और विषयवस्तु में काफी भिन्नता है। ये तो चूर्णिसूत्र हैं, चूर्णिपद नहीं और फिर कसायपाहुड के गाथासूत्रों से इन चूर्णिसूत्रों का महत्व कम नहीं है, अपितु एकदूसरे के पूरक हैं।
कसायपाहुड चुण्णिसुत्तों के साथ ही सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व. पं. हीरालाल जी सिद्धान्तशास्त्री ने आ. यतिवृषभ को अनेक प्रमाणों द्वारा कम्मपयडि चुण्णि,
१. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा-भाग २पृ. ८० . २. अत्थबहुलं महत्थं हेउ-निवाओवसग्गगंभीरं।
बहुपायमवोच्छिन्नं गय-णयसुद्धं तु चुण्णपयं ।। अभिधान राजेन्द्रकोश, चुण्णपद ३. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा-भाग-२ पृष्ठ८१ ४. कम्मपयडी-चिरन्तनाचार्य-विरचित-चूा समलंकृता, प्रका—मुक्ताबाई ज्ञानमंदिर डभोई,
गुजरात।
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