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श्रमणविद्या-३
१. अर्थकथा
२. कामकथा ३. धर्मकथा
४. मिश्रितकथा विषय को आधार मानकर धवलाटीकाकार वीरसेनाचार्य ने धर्मकथा के चार भेदों का निरूपण किया हैं। १. आक्षेपणी
२. विक्षेपणी ३. संवेदनी
४. निवेदनी कथाओं में प्रयुक्त पात्रों के आधार पर तीन भेद किए जाते हैं -
१. दिव्यकथा- जिस कथा में दिव्य-व्यक्ति पात्र हों तथा उन्हीं के द्वारा घटनाएं घटित हों।
२. मानुषी कथा- जिसमें मनुष्य पात्र हों, मानुषी कथाएँ कहलाती हैं।
३. दिव्य-मानुषी कथा- जिसमें देव तथा मनुष्य पात्र हों, वे दिव्यमानुषी कथाएँ कही जाती हैं।
प्राकृत-कथाओं में प्रयुक्त भाषा के आधार पर भी कथा के तीन भेद प्राप्त होते हैं।
१. संस्कृत २. प्राकृत ३. मिश्र उद्योतनसूरि ने स्थापत्य के आधार पर कथाओं के पाँच भेद गिनाये हैं । १. सकल कथा २. खण्ड कथा ३. उल्लाव कथा ४. परिहास कथा ५. संकीर्ण कथा
१. धवलाटीका, पुस्तक १. पृ. १०४ २. (क) दिव्वं, दिव्वमाणुसं, माणुसं च। तत्थ दिव्वं नाम जत्थ केवलमेव
देव चरिअं वण्णिज्जइ। समराइच्च कहा, पृ.२ ३. तं जह दिव्वा तह दिव्वमाणुसी माणुसी तहच्चेय।- लीलावई कहा, गाथा ३५
गाथा ३६ ४. तओ पुण पंच कहाओ। तं जहा- सयलकहा, खंडकहा, उल्लावकहा, परिहासकहा।
तहावरा कहियत्ति- संकिण्ण कहत्ति। कुवलयमालाकहा, पृ. ४, अनुच्छेद ७.
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