________________
१४०
श्रमणविद्या-३
जातक आदि ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि ब्राह्मण शिक्षा और बौद्ध शिक्षा दोनों ने मिलकर भारतवर्ष की शिक्षा और संस्कृति को उन्नत किया। हिन्दू संन्यासियों और बौद्धभिक्षु तपोवन और विहारों में नहीं रहे बल्कि उन्होंने विदेश में परिभ्रमण कर ऋषि और मुनिओं और भगवान् बुद्ध के उपदेशों का प्रचार किया, जिसके फलस्वरूप उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण, छन्द, काव्य, व्याकरण, ज्योतिष आदि शिक्षाओं के साथ-साथ तर्कविद्या, हेतुविद्या, चिकित्साविद्या, शिल्पविद्या और संगीतविद्या आदि को एक सूत्र में ग्रथित कर भारतीय संस्कृति को चरमोत्कर्ष पर ले जा सके। उस समय विहार अध्यात्म शिक्षा केन्द्र थे। भारविहार, तक्षशिला और ताम्रलिप्ति विहारों में अध्यात्म शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक जीवन व्यवस्था की शिक्षा दी जाती थी। यही भारतीय शिक्षा का सर्वमान्य मूल मन्त्र था
"श्रद्धया देयम् श्रद्धया आदेयम्'
।। इति शम् ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org