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बौद्धधर्म में मानवतावादी विचार : एक अनुशीलन
प्रो. ब्रह्मदेव नारायण शर्मा
आचार्य एवं अध्यक्ष,
पालि एवं थेरवाद विभाग
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी भगवान् बुद्ध ने जिस धर्म का प्रवर्तन किया उसे बौद्धधर्म कहते हैं। महाकारुणिक भगवान् बुद्ध ने प्राणियों को करुणाचक्षु से देखा और उनके कल्याण के लिए मार्ग का निर्देश किया। उस मार्ग को मध्यममार्ग कहा जाता है। मध्यम मार्ग विशुद्धि का मार्ग है, दु:खनिरोध का मार्ग है। यह आठ अङ्गों से समुपेत है। वे हैं सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम (प्रयत्न), सम्यक् स्मृति एवं सम्यक् समाधि। इन मार्गों के सम्यक् आचरण से मानव परमोत्कर्ष को प्राप्त कर सकता है तथा मानवता के गुणों से विभूषित हो सकता है। भगवान् बुद्ध ने कहा है कि 'दर्शन की विशुद्धि के लिए यही एकमात्र मार्ग है, तुम इसी मार्ग पर चलो, यह मार को भी मोहित करने वाला मार्ग है। यह मार्ग शील, समाधि एवं प्रज्ञा इन तीन अङ्गों से युक्त है। शील (सदाचार) के समादान से मनुष्य मानवता के गुणों से समलंकृत हो जाता है। शीलवान् मनुष्य समादर का पात्र होता है और स्व-पर कल्याण से समुपेत होता है। स्वर्णालंकारों से सुसज्जित एक राजा की उतनी शोभा नहीं होती जितनी शोभा शीलालंकार से सुशोभित एक यति (भिक्षु) की होती है । यह धर्म आचरण की शुद्धता को सर्वोच्च आदर्श स्वीकार करता है। आचारवान् मनुष्य समाज के द्वारा पूजित एवं सत्कृत होता है, तथा मानवता के गुणों से समलंकृत हो मानवमात्र का हित, सुख और कल्याण करता हुआ शान्तपद का अधिकारी हो जाता है। यह धर्म सभी अकुशल कर्मों का
१. एसोव मग्गो नत्थञो दस्सनस्स विसुद्धिया ।
एतं हि तुम्हे पटिपज्जथ मारस्सेतं पमोहनं ।। (ध.प. गा.सं. २९४) २. सोभन्तेवं न राजानो मुत्तामणिविभूसिता ।
यथा सोभन्ति यतिनो सीलभूसनभूसिता ।। (वि.म., पृ. ११)
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