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बौद्धधर्म में मानवतावादी विचार : एक अनुशीलन
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जो हिंसा करता है, मृषावादी है, विना दिये ले लेता है, परस्त्री पर बुरी नजर रखता है, मादक द्रव्यों का सेवन करता है वह मनुष्य इसी लोक में अपनी जड़ को स्वयं काट देता है। अत: अहिंसा, सत्यवादिता, त्याग एवं ब्रह्मचर्य मनुष्य का अलंकार है, इनसे युक्त मनुष्य मानवता के गुणों से युक्त समझा जाता है। अहिंसा न केवल हिंसा तथा परपीड़न की वर्जना है, अपि तु शान्ति, मैत्री, मुदिता एवं सहानुभूति की भावना है।
__ भगवान् बुद्ध ने शील की शिक्षा दी है। सुन्दर आचरण ही शील है। सदाचरण एवं सुमानसिकता मानवता के परमोत्कर्ष गुण हैं। शील की सर्वश्रेष्ठ गन्ध दिगदिगन्त को सुरभित करती है।
चन्दनं तगरं वापि, उप्पलं अथवस्सिकी । एतेसं गन्धजातानं सीलगन्धो अनुत्तरो ।। अप्पमत्तो अयं गन्थो यायं तगरचन्दनी ।
यो च सीलवतं गन्धो वाति देवेसु उत्तमो ।। जो शीलसम्पन्न, अप्रमादविहारी तथा प्रज्ञायुक्त है उनके मार्ग को पाना मार के लिए भी कठिन है । ____सत्संगति मानव के अभ्युदय का मूल है। भगवान् बुद्ध ने सज्जनों की संगति में रहने की प्रेरणा दी है। उन्होंने कहा है कि विचरण करते यदि अपने से श्रेष्ठ अथवा अपने समान व्यक्ति को न पायें, तो दृढ़ता के साथ अकेला ही विचरण करें, मूों की सहायता न लें
चरञ्चे नाधिगच्छेय्य सेय्यं सदिसमत्तनो।
एकञ्चरिय दलहं कयिरा, नत्थि बाले सहायता ।। शीलविपन्न (दुःशील) और एकाग्रतारहित (असमाहित) के सौ वर्ष जीने से शीलवान् और ध्यानी का एक दिन का जीवन श्रेष्ठ है।
यो च वस्ससतं जीवे दुस्सीलो असमाहितो । एकाहं जीवितं सेय्यो सीलवन्तस्स तायिनो ।।
२. ध.प., गाथा-सं. ५५,५६।
१. ध.प., गाथा-सं. ५४; ३. तेसं संपन्नसीलानं अप्पमादविहारिनं ।
सम्मदज्ञाविमुत्तानं, मारो मग्गं नं विन्दति ।। ४. ध.प., गाथा-सं. ६१;
५. ध.प., गाथा-सं. ११०।
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