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बौद्धधर्म में मानवतावादी विचार : एक अनुशीलन
अर्थात् आरोग्य परमलाभ है, संतोष परम धन है, विश्वास परम ज्ञाति है, तथा निर्वाण परम सुख है।
बौद्धधर्म में मैत्री, करुणा, मुदिता एवं उपेक्षा भावना को ब्रह्मविहार कहा जाता है। ब्रह्मविहार श्रेष्ठ विहार को कहते हैं। ये चार ब्रह्मविहार मानवता के उत्कर्ष हैं। सभी प्राणियों के प्रति मैत्री का व्यवहार, सभी प्राणियों के दु:खों को दूर करने की उत्कृष्ट अभिलाषा, सभी प्राणियों के सुख एवं कल्याण के प्रति प्रसन्नता की भावना तथा सभी स्थितियों में समानभाव रखना ही ब्रह्मविहार है। मनुष्य इन गुणों से समुपेत हो परमोज्ज्वलता को प्राप्त कर सकता है, तथा समाज में मैत्री और समानता स्थापित हो सकती है। सभी प्राणियों के प्रति प्रेम, सद्भाव परोपकार एवं समता की अनवद्य भावना से मानवता का चतुरस्र प्रसार सम्भव है।
पविवेकरसं पीत्वा रसं उपसमस्स च ।
निद्दरो होति निप्पापो धम्मपीतिरसं पिव ।। __ एकान्त चिन्तन तथा शान्ति के रस को पीकर धर्म के प्रेम-रस का पान करता हुआ पीड़ा से रहित तथा निष्पाप हो जाता है।
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