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श्रमणविद्या- ३
आचार्य शान्तिदेव ने भी कहा है कि यदि महायान सूत्र बुद्धवचन नहीं है तो हीनयानी पिटक भी बुद्ध वचन नहीं हो सकते। जिस न्याय से श्रावकयान पिटक बुद्धवचन सिद्ध होता है उसी न्याय से महायान सूत्र भी बुद्धवचन सिद्ध होगा । नन्वसिद्धं महायानं कथं सिद्धस्तवदागमः । यस्मादुभयसिद्धोऽसौ न सिद्धोऽसौ तवादितः ।।
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महाकाश्यपपमुख्यैश्च यद्वाक्यं नावग्राह्यते ।
तत्वयानवबुद्धत्वादग्राह्यं कः करिष्यति ।
उन महायान आचार्यों ने यह सिद्ध किया कि महायान सूत्रों के विषय अतिगम्भीर एवं सूक्ष्म हैं और महाश्रावकों का गोचर नहीं हो पाया है। इनका विषय न्याय संगत है। अतः विषय का प्रतिपादन करने वाले सूत्र बुद्ध का वचन हैं।
परन्तु आधुनिक काल के धर्म और संस्कृति तथा साहित्य के इतिहासकारों का कहना है कि हीनयान तथा महायान दोनों के सभी सूत्र बुद्ध के जीवनकाल में प्रादुर्भूत नहीं हुए, पर ये सभी क्रमशः धीरे-धीरे रचे गए थे । मानवबुद्धि के विकास के क्रम के साथ जुड़े हुए हैं। यदि ऐसा हो तो यह सम्भव है कि तीनों पिटकों में से अभिधर्म पिटक बाद में हुआ और विशेषतः महायान के अभिधर्म पिटक और भी बाद में हुआ हो ।
२. त्रिपिटक का स्वरूप या लक्षण
अधिशील शिक्षा जिसका साक्षात् तथा मुख्य विषय है वह पिटक विनय पिटक है। जिसका साक्षात् एवं मुख्य विषय अधिसमाधि शिक्षा है, वह सूत्रपिटक है। जिसका साक्षात् विषय तथा मुख्य विषय अधिप्रज्ञा शिक्षा है, वह अभिधर्म पिटक है। इसलिए प्रज्ञापारिमितासूत्र आदि वास्तविक अभिधर्म सूत्र हैं और उनकी सही व्याख्याकरने वाले शास्त्र वास्तविक अभिधर्म शास्त्र हैं। अभिधर्म पिटक का अर्थ ऐसा बिल्कुल नहीं है कि स्थविरवाद के अभिधर्म सूत्रों या अभिधर्म कोश आदि जिनके नाम में अभिधर्म उल्लिखित हैं, वे ही अभिधर्मपिटक है। यदि ऐसा मान लें तो बड़ी भूल होगी ।
३. अभिधर्म पिटक का विषय
दोनों यानों के अभिधर्म पिटकों का मुख्य प्रतिपादित विषय अधिप्रज्ञा शिक्षा है, किन्तु विषय के विस्तार और गम्भीरता में बड़ा अन्तर है ।
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