________________
थेरवाद बौद्धदर्शन में निर्वाण
की अवधारणा
डॉ. हर प्रसाद दीक्षित
वरिष्ठ प्राध्यापक,
पालि एवं थेरवाद विभाग सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी
महामानव भगवान् बुद्ध का अवतरण इस भारत-भूमण्डल में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण संसार के लिए एक आश्चर्यजनक घटना है। महात्मा बुद्ध द्वारा प्रवर्तित धर्म आज इतना प्रासंगिक हो गया है, कि बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय एवं विश्वव्यापी करुणा से ओतप्रोत इस धर्म से ही देव, मानव या प्राणी मात्र का मङ्गल सम्भव है। इस अद्भुत अनन्य मानव ने ही इस जगत् को अपने सर्वोच्च ज्ञान से प्रकाशित किया। और मनुष्य की सम्पूर्णता का आदर्श प्रस्तुत किया।
असीम करुणा, असीम अनुकम्पा से ओत-प्रोत इस महामानव ने अन्धकार से आच्छादित, आत्यन्तिक दुःख से दुःखित एवं दौर्मनस्य से दूषित प्राणी को प्रकाश-पुंज प्रदान कर, लोकोपकार के अनुपम मार्ग का प्रख्यापन किया। उन्होंने मिथ्याभ्रान्तियों से भ्रमित एवं अन्धविश्वासों की जड़ता से जटित सांसारिक प्राणी को अपने पराक्रम से मुक्त कराया। ऐसे महाप्रज्ञावान शास्ता से एक बार मगधमहामात्य वर्षकार ब्राह्मण के प्रश्न पूछने पर उन्होंने महाप्रज्ञावान एवं महापुरुष के सम्बन्ध में कहा था, कि उस व्यक्ति को ही महापुरुष कहा जाता है, यथा
यो वेदि सब्बसत्तानं मच्चुपासा पमोचनं, हितं देवमनुस्सानं जायं धम्मं पकासयि; यो वे दिस्वा च सुत्वा च पसीदन्ति बहू जना ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org