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बोधिसत्त्व-अवधारणा के उदय में बौद्धत्तर प्रवृत्तियों का योगदान १०७
के विविध पक्ष सर्वथा अछूते रहे होगे। भले ही भारतीय धर्मों की अपनी विशिष्ट प्रवृत्ति के अनुरूप बाहर से गृहीत इन प्रभावों का आत्मसात करण एवं परिपाचन कुछ इस प्रकार से सम्पन्न हुआ हो कि इन प्रभावों को सुस्पष्ट रूप से अब पहचान पाना भी आवश्यक बन गया हो। तथापि इन विचारों के प्रभाव चिन्ह के रूप में निम्नलिखित विशेषताओं को परीक्षणार्थ उपस्थित किया जा सकता है
बौद्ध, वैष्णव एवं शैव धर्मों के कतिपय स्वरूपों का सुनिश्चित विकास समान काल की पृष्ठभूमि में पश्चिमोत्तर भारत में हुआ। फलस्वरूप इनके कतिपय तथ्यों में आश्चर्यनक साम्य का दर्शन होता है। उदाहरणार्थ इन सभी में यह विचार प्राप्त होता हैं कि दैवी प्रकृति का आविर्भाव चार या पाँच स्वरूपों में हुआ। पांचरात्रों के पाँच व्यूहो, महायानिकों के पाँच जिनों तथा पाँच सदाशिव तत्त्वों का उल्लेख इस सन्दर्भ में किया जा सकता हैं।
___ पांचरात्रों एवं महायानियों के इन परस्पर साम्य वाले सिद्धान्त का अभ्युदय पश्चिमोत्तर भारत में संभवत: उस समय हुआ जब कि यहाँ ईरानी प्रभाव की प्रधानता थी। पाँचरात्रों के व्यूहो से बहुत मिलती जुलती पारसियों के अहुर मजदा के स्पेन्ट मैन्यु एवं फावरियों की अवधारणा है जिस प्रकार अहुर मजदा के ६ अमेश स्पेन्तास बतलाए गए हैं उसी प्रकार ईश्वर को भी ६ गुणों से विभूषित बतलाया गया हैं। डॉ. हरदयाल का कथन है कि बोधिसत्त्व अवधारणा के अभ्युदय में जरथुस के धर्म के योगदान की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। जरथुस धर्म के प्रवासी और अमेस स्पेन्तास का बोधिसत्त्वों से अत्यधिक साम्य है। अहुर मजदाये सम्बुद्ध ६ अमेस स्पेन्तास भावों या प्रत्ययों के मूर्तीकरण हैं एवं डॉ. हरदयाल का यह कथन सर्वथा युक्तियुक्त प्रतीत होता है कि प्रमुख बोधिसत्त्व भी तो वस्तुत: प्रज्ञा एवं करुणा के मूर्तिकरण ही है। जरथुस धर्म के ६ अमेस स्पेन्तास ये हैं।
. १. अस (सत्य) २. बोहुमन (बृहन्मनस्)
१. डॉ. हरदयाल बोधिसत्वडाक्ट्रिन पृ. ३९ २. डॉ. हरदयाल बोधिसत्वडाक्ट्रिन पृ. ३९.
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