________________
अभिधर्म और माध्यमिक
प्रो. थुबतन छोगडुब
अध्यक्ष, बौद्धदर्शन विभाग
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी सामान्यतया पिटक के दो वर्ग है हीनयानी पिटक और महायानी पिटक। उसी प्रकार अभिधर्म भी दो भागों में विभक्त है। दोनों यानों के पिटकों विशेषत: अभिधर्म पिटकों के विषय तथा शब्दावली में बड़ा अन्तर है। पिटकों के स्वरूप यथारूप से समझने के लिए उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, अत: सर्वप्रथम इनके ऐतिहासिक तथ्यों पर संक्षेप में विचार करना अनुचित नहीं होगा। १. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि । यद्यपि दोनों यानों के पिटकों के प्रादुर्भाव के विषय में भिन्न-भित्र मान्यताएँ हैं, तथापि प्रमाणित इतिहास तथा खोज के अनुसार हीनयानी पिटक पहले हुए थे और महायानी पिटक उनके बाद हुए हैं। (क) हीनयानी पिटकों का प्रादुर्भाव
हीनयान की अनेक शाखाएं थी, पर उनमें से स्थविरवाद की परम्परा सर्वाधिक सिंहलद्वीप में विकसित हुई। उस देश के विद्वानों ने अनेक इतिहास लिखे जिनमें से दीपवंश सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता है। उसमें लिखा है, कि भगवान् बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तुरन्त बाद राजगृह में प्रथम संगीति हुई जिसमें सूत्र तथा विनय का संगायन किया गया। जब वैशाली में द्वितीय संगीति हुई, उस समय केवल विनय पिटक का संगायन किया गया।
स्पष्ट है कि विनय सम्बन्धी शिक्षा में परस्पर विरोध हो जाने के कारण द्वितीय संगीति हुई थी; अत: उस समय विनय सूत्रों पर मुख्य केन्द्रित किया गया। क्योंकि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात प्रातिमोक्ष-शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org