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वर्तमान समय में बुद्ध-वचन की प्रासंगिकता
प्रो. विश्वनाथ बनर्जी सम्यक् सम्बुद्ध भगवान बुद्ध मानव-जाति के महान् गुरु ढाई हजार साल से भी पहले जन्मे और इसी विश्व की पीड़ित मानव-जाति की अवस्था की उन्नति के लिए काम किया। आज जब हम उनकी वाणी पर विचार करते है तो हम कृतज्ञ सम्मान भावना से भरकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं कि उनकी वाणी आज के युग के संदर्भ में भी कितनी प्रासंगिक है।
विश्व आज अनेक टुकड़ो में बँटा हुआ है और परस्पर युद्धरत देश एक दूसरे के प्रति शत्रुतापूर्ण दलों में विभाजित है, मानवता को बचाने की कोई आशा नहीं दीख पडती बल्कि और भी भयावह एक तीसरा विश्वयुद्ध हमारे आगे मुँह बाए खड़ा है। जीवन के मूल्यबोध की धारणायें आमूल बदल गई हैं। चारों ओर मनुष्य स्वभाव और नैतिक मूल्यों का सामग्रिक पतन हुआ है। अपने व्यक्तिगत लाभ हानि की नाप-तौल के बीच हम यह नहीं समझते कि अच्छाई के निर्वाह से भूलों का सुधार और बुरे का नाश ही समाज में सामंजस्य बनाए रखने में और विरोधों से मुक्त एक विश्व का निर्माण करने मे हमारी सहायता कर सकता है। इसे सफल बनाने के लिए सौहार्दपूर्ण मित्रता धैर्य की भावना और भाई-चारे की भावना से उबुद्ध मन की आवश्यकता है। बुद्ध ने अपने उपदेशों में इन सभी के बारे में बड़ी ही आश्वस्त पूर्ण रीति से आलोचना की है।
सचेतन विश्व की भलाई के लिए बुद्ध का संदेश सिर्फ प्रचीन भारत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि एशिया के बहुसंख्य लोगों के मन को प्रभावित किया और उनकी वाणी से उन्हें सान्त्वना और शान्ति का सन्देश मिला। उनके लिए बुद्ध न केवल विश्व-प्रेम की प्रतिमूर्ति थे, बल्कि पूर्ण ज्ञान के प्रतीक भी थे। उनकी वाणी में ही उन लोगों के पीड़ित मन को आश्रय मिला और
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