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वर्तमान समय में बुद्ध-वचन की प्रासंगिकता
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अनुशासन जो कि बौद्ध नीतिशास्त्र और दर्शन के लिए अत्यावश्यक है-केवल मन की एकाग्रता ही नहीं समझा जाना चाहिए। तीसरा पक्ष है पञ्जा-सम्मासंकल्प सही संकल्प और सम्मादिट्ठि सही दृष्टि निर्देशित बौद्धिक अनुशासन। इन तीन विभागों में हमें आठ महान् निर्देश महान् पथ के सूत्र में मिलते हैं। यह प्रत्यक्षं है कि बौद्धिक अनुशासन के अन्तिम विभाग में बौद्ध धर्म ने विश्व की सबसे बड़ी पहेली के समाधान के बारे में अपने अनोखे विचार प्रस्तुत किये हैं। अन्य दो अनुशासन अनेकांश में भारत में उस समय प्रचलित अन्य नैतिक, बौद्धिक और ध्यान अभ्यास से मिलते-जुलते हैं। बौद्ध धर्म में जीने की नैतिक परम्परा की पराकाष्ठा दार्शनिक ज्ञान में हैं।
"सम्मा दिट्ठि' यानी सही दृष्टि के ऊपर दिया गया जोर इस बात का निर्देशक है कि नैतिक नियम मूल सत्यों की उपलब्धि पर आधारित होने चाहिए। दु:ख के अनिवार्य कानून द्वारा नियन्त्रित विश्व में सदाचारी मन के निर्माण की प्रेरणा के बौद्धधर्म में नैतिकता का मानदण्ड माना जा सकता है। जैसा कि धम्मपद में कहा गया है
परे च न विजानन्ति मयमेत्थ यमामसे ।।
ये च तत्थ विजानन्ति ततो सम्मन्ति मेधगा ।। अज्ञानी यह नहीं जानता कि यहाँ हम सब को अन्त की ओर जाना हैं, किन्तु जो इसे उपलब्धि करते हैं, उनके झगड़े तत्काल खत्म हो जाते हैं।
'सम्मा संकप्प' सही आकाक्षां या इच्छा मनुष्य के निश्चयों को उँचा और महान बनाने में बुद्ध के बताए हुए मार्ग का एक महत्त्वपूर्ण सोपान है। बुद्ध ने नैतिक जीवन के साथ युक्ति और इच्छा को जोड़ा और समस्त प्राणियों के प्रति सद्भावना और ममत्व की वृद्धि के लिए यह आवश्यक हैं। इससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि हमारी सही अभिलाषा और सही मार्गदर्शन से हम अपने संसार को हमारे तनाव और अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को मिटाकर और अधिक सुखमय बना सकते हैं। . हमारे अधिकांश झगड़े और तनाव कटु शब्द और कड़वी भाषा के व्यवहार से पनपते हैं, भाषा पर नियन्त्रण शान्ति और सदभावना की स्थापना में सहायक हैं और बुद्ध ने सम्मावाचा के सम्बन्ध में कहा है कि किसी भी
१. Ibid. २०१
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