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श्रमणविद्या-३
प्रकार के मिथ्या दुरावपूर्ण और कटुवचन के व्यवहार से विरत रहकर इसका पालन हो सकता है-यह एक समाजिक गुण है जो कि व्यक्ति को गौरव व सम्मान प्रदान करता है।
सही आचरण या महान् कार्य दूसरों की भलाई तक पहुँचाते हैं और एक आदर्श चरित्र के गठन के लिए ये आवश्यक गण हैं। "सम्मा कम्मन्त' या सही कार्य जो कि महान हों और सही प्रकार के हो, कर्ता के अलोभ, अद्वेष और अमोह स्वभाव को उजागर करते हैं। इस अभ्यास का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण उपकारी पक्ष है कि यह कर्ता को नैमित्तिक कार्यों से जुड़े कदाचरण से मुक्त करता है।
सही आजीविका या 'सम्मा अजीव' दायित्वपूर्ण सामाजिक मनुष्य के निर्माण में अत्यावश्यक है। यह नैतिक जीवन का सूचक है और हमारे आर्थिक जीवन को नैतिक बनाने की कोशिश करता है जिससे कि हम अभद्र आचरण से दूर रहें और दूसरों को ठगकर फायदा न लूटें। यह देखा गया है कि कार्यों से ही मनुष्य परित्यक्त होता है और कार्यों से ही वह ब्रह्मण भी बन सकता है।
नैतिक मनोविज्ञान अभ्यास 'सम्मा वायामो' या सही अभ्यास का निर्देश समस्त प्रकार के बुरे या गलत मनोभावों के दमन या उन्मूलन के लिए किया गया है। यह सद्भावना के निर्माण पोषण और वृद्धि में सहायक है और मन को नये विचारों से दुषित होने से रोकता है।
मानसिक अभ्यास की निस्तरचल सही प्रक्रिया 'सम्मासति' या सही मानसिकता समस्त आकांक्षाओ की निवृत्ति में सहायक है। श्रमसाध्य और योजनाबद्ध अभ्यास द्वारा व्यक्ति इस प्रकार से शरीर और मन को शिक्षित कर सकता है कि किसी भी प्रकार की वासना या विषाद उत्साही सचेत शान्त और धीर बने शक्त नैतिक चरित्रवान् आकांक्षी के मन में नहीं घुस सके। 'सम्मा समाधि या सही ध्यान प्रार्थना चिन्तन मनन द्वारा मन को धीर और प्रशान्त बनाते हुए नैतिक प्रक्रिया के चरम उत्कर्ष तक पहुँचा जा सकता है। अखण्ड शान्ति की सृष्टि होती है और आत्मोपलब्धि की प्राप्ति होती है। समस्त समस्याओं और तनावों से मुक्त रहकर, आकांक्षी सच्चा आनन्द प्राप्त करता है।
१. cf. Brahmanavagga in Dhammapada
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