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श्रमणविद्या-३
प्रश्न है यदि अतीत, अनागत रूप आदि नहीं ही हैं तो वे आलम्बनमात्र भी कैसे हो सकेंगे?
यह सही है, यद्यपि वे वर्तमान की तरह तो गृहीत नहीं होंगे, किन्तु कल्पना, स्मृति आदि के वे आलम्बन होंगे। ‘पहले यह था, बाद में यह होगा' इत्यादि के रूप में वे स्मृति और कल्पना के आलम्बन होंगे। ३. वैभाषिक
भगवान् ने अतीत, अनागत और प्रत्युत्पन्न इन तीनों कालों के रूपों को एकत्र संगृहीत कर ‘यह रूपस्कन्ध है' ऐसा कहा है। यदि अतीत, अनागत रूपों की सत्ता न मानी जाएगी तो सूत्रविरोध होगा?
सौत्रान्तिक-मिथ्या संज्ञा और मिथ्या विकल्पों का अनुवर्तन कर भगवान् ने वैसा कहा है, न कि उनकी द्रव्यत: सत्ता का अनुवर्तन कर वैसा कहा है। रूप का लक्षण है—प्रतिघात करना। अतीत और अनागत रूपों में वह लक्षण ही घटित नहीं होता, अत: वे रूप कैसे हो सकते हैं। अतीत और अनागत रूपों की जब सत्ता ही सिद्ध नहीं है तो वे अनित्य भी कैसे हो सकते हैं। इसलिए भगवद्-वचन के अभिप्राय का अन्वेषण करना चाहिए। ४. वैभाषिक
__विज्ञेय के होने पर ही विज्ञान का उत्पाद होता है। अत: विज्ञानों के विषय को अवश्य सत् होना चाहिए। यदि अतीत और अनागत विषय न होंगे तो उनको आलम्बन बनाकर मनोविज्ञान का उत्पाद ही नहीं हो सकेगा। किन्तु अतीत, अनागत को विषय बनाने वाला मनोविज्ञान होता है। अत: अतीत, अनागत की सत्ता सिद्ध है?
___ सौत्रान्तिक-यह कोई नियम नहीं है कि विज्ञान के विषय को अवश्य सत् होना चाहिए। असत् (अविद्यमान) को भी आलम्बन बनाकर विज्ञान का उत्पाद देखा जाता है। मद से मत्त पुरुष अविद्यमान वस्तु को भी विद्यमान की तरह देखते हैं। स्वप्न में भी असत् को आलम्बन बनाकर विज्ञान उत्पन्न होते हुए देखा जाता है। पुनश्च, यदि अतीत एवं अनागत होंगे तो वे अवश्य निर्हेतुक
और नित्य होंगे और ऐसा होना सम्भव नहीं है। अत: अतीत और अनागत नहीं ही होते, अपि च, भाव और अभाव दोनों विज्ञान के विषय होते हैं। भाव वर्तमान अवस्था में तथा अभाव अतीत और अनागत अवस्था में विज्ञान के
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