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श्रमणविद्या- ३
खेम (क्षेम) अर्थात् निरुपद्रवता, शान्तिमयता, निर्वाण के अधिगम का प्रतीक है, क्योंकि निर्वाण सर्व शान्तिमयता, सर्व प्रसन्नता और सभी प्रकार के दोषों एवं अवगुणों से सर्वमुक्तता का अधिवचन है। निर्वाण को हम - शान्ति से आपूरित चित्त' कहते हैं । परम शान्तिमयता को प्राप्त करने के लिए मिथ्यादृष्टि और मोह का परिवर्जन करना अपरिहार्य है । इन दोषों के व्युपशान्त हुए बिना चित्त का प्रशान्त होना संभव नही है । दुःख का निरोध और रागमुक्ति शान्ति को लाता है, अत: शान्ति से आपूरित चित्त उत्तम मंगल है |
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इस प्रकार असोकं, विरजं, खेमं, ये तीनों उत्तम मंगल हैं क्योंकि यह संसार की सर्वोच्च अवस्था अर्थात् निर्वाण का कारण है और आह्वनेय के योग्य बनाता है।
एतादिसा कत्वान सब्बत्थमपराजिता ।
सब्बत्थ सोत्थिं गच्छन्ति तं ते मंगलमुत्तमं ।।
ऐसा करके सर्वत्र अपराजित होकर सर्वत्र कल्याण को प्राप्त करता है, यह उनका उत्तम मंगल है। कहा भी है
इधनन्दति पेच्च नन्दति कतपुञ्ञ उभयत्थ नन्दति । पुञ्ञ में कर्तति नन्दति, भिय्यो नन्दति सुगतिं गतोति ।।
कृतपुण्य व्यक्ति इस लोक में आनन्द पाता है और परलोक में जाकर भी आनन्द पाता है। पुण्यात्मा दोनों लोकों में आनन्द पाता है। वह अपने कर्मों की विशुद्धता को देखकर आनन्दित होता है।
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इस प्रकार भगवान् बुद्ध ने अड़तीस मंगलों (अट्ठतिंसमङ्गलानि ) का उपदेश किया है जो समस्त मानव जीवन के लिए कल्याणकारी है।
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