________________
बौद्ध वाङ्मय में मङ्गल की अवधारणा
अक्कोसं वध बन्धञ्च अदुट्ठो यो तितिक्खति ।
खन्तिबलं बलानीकं तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं ।। (धम्मपद ३८८) क्षान्ति से सहनशीलता तथा अन्य गुणों का अधिगम होता है अत: क्षान्ति उत्तम मंगल है। क्षान्ति के संदर्भ में निम्न गाथाएँ भी उल्लेख्य
अत्तनोपि परेसञ्च अत्थवाहो व खन्तिको
सग्गमोक्खगमं मग्गं आरुल्हो होति खन्तिको । केवलानम्पि पापानं खन्ति मूलं निकन्तति ।
___ गरहकलहादीनं मूलं खन्ति खन्तिका । खन्तिको मेत्तवा लाभी यसस्सी सुखसीलवा ।
पियो देवमनुस्सानं मनापो होति खन्तिको । सत्थुनो वचनोवादं करोतियेव खन्तिको।
परमाय च पूजाय जिनं पूजेति खन्तिको । सीलसमाधिगुणानं खन्ति पधानकारणं
सब्बेपि कुसला धम्मा खन्तियायेवढन्ति ते । जिसमें क्षान्ति सहिष्णता रहती है। वह अपने लिए और दूसरों के लिए भी हितसाधक (अर्ववाह) होता है। वह स्वर्ग के मार्ग पर आरूढ़ होता है और तृष्णाओं का निर्वापन करता है।
क्षान्ति सहिष्णुता सम्पूर्ण पापमूलों को उखाड फेंकती है, जो सर्वसहिष्णु है अथवा सहिष्णुता के गुणों से अभ्युपेत है वह गर्दा एवं कलह के अशोभन कारणों को निर्मूलित कर देता है।
जो क्षान्ति से समुपेत है वह मैत्रीवान् लाभी, यशस्वी भाग्यवान् तथा . संपूजित एवं विप्रसन्न होता है।
वह देवों और मनुष्यों के लिए प्रिय और प्रशंस्य होता है। वह जो क्षान्ति एवं सहिष्णुता के गुणों से अनुस्यूत है, वह बुद्धका सच्चा अनुगामी होता है। वह आदर के साथ बुद्ध की पूजा करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org