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श्रमणविद्या-३
८. अरियसच्चदस्सनं आर्यसत्यदर्शन को भगवान् बुद्ध ने उत्तम मंगल कहा है। क्लेशों से जो दूर रहते हैं, उन्हें आर्य कहते—'आरकत्ता किलेसानं ति अरियो'। आर्य लोग इसे जानते हैं, अत: आर्यसत्य कहते हैं। आर्यसत्य के प्रत्यवेक्षण को आर्यसत्यदर्शन कहते हैं। आर्यसत्य चार हैं। दुःख, दुःखसमुदय, दु:खनिरोध तथा दु:खनिरोध का मार्ग।
जो चार सत्य का दर्शन नहीं करता है वह दु:ख का अतिक्रमण नहीं कर पाता है। उसके लिए पुनर्जन्म का चक्र सर्वदा गतिमान रहता है। भगवान् बुद्ध ने कहा है
चतुन्नं अरियसच्चानं यथाभूतमदस्सना,
संसरितं दीघमद्धानं तासु तास्वेव जातिसु । यन्ति एतानि दिट्ठानि भवनेत्ति समूहता,
उच्छिन्नं मूलं दुक्खस्स नत्थिदानि पुनब्भवोति ।। जिसने चार आर्यसत्य का गथाभूत दर्शन नहीं किया, वह उन उन जन्मों में दीर्घकाल तक संसरण करता रहता है। इन्हें देखने के अनन्तर भवनेत्री तृष्णा उच्छिन्न हो गयी, दुःख का मूल भी उच्छिन्न हो गया, अब पुनर्जन्म नहीं है। भगवान् बुद्ध ने कहा है
ये दुक्खं नप्पजानाति अथो दुक्खस्स संभवं, यत्थ च सब्बसो दुक्खं असेसं उपरुज्झति। तञ्चमग्गं न जानाति दुक्खूपसमगामिनं चेतोविमुत्ति हीना ते अथो पञ्जाविमुत्तिया। अभब्बा ते अन्तकिरियाय ते वे जातिजरूपगा।
ये च दुक्खं पजानाति अथो दुक्खस्ससंभवं, यत्थ च सब्बसो दुक्खं दुक्खूपसमगामिनं। चेतोविमुत्तिसम्पन्ना अथो पञ्जाविमुत्तिया, भब्बा ते अन्तकिरियाय न ते जातिजरुपगा ।।
___ जो दु:ख को तथा दु:ख के कारण को तथा दुःख के अशेषनिरोध को और दुःखनिरोध के मार्ग को नहीं जानता है और जो चेतो विमुक्ति तथा प्रज्ञाविमुक्ति से हीन है। वह जन्म-जरा को प्राप्त दुःख का अन्त करने योग्य नहीं है। और जो दु:ख को दु:ख के आगमन, दु:ख के अशेष निरोध तथा निरोध के मार्ग को जानता है और चेतोविमुक्ति तथा प्रज्ञाविमुक्ति को जानता है, वह दु:ख का अन्त करने में समर्थ है, वह जाति-जरा से मुक्त है।
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