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सरस्वती
[ लेखक का अफ्रीका का हवशी रसोइया भोजन परोस रहा है।]
रारा आदि के असर से डच - उपनिवेश सुरीनाम कैसे बच सकता है ? वहाँ भी प्रवासी भाई 'लकड़हारों और पनि हारों' में शुमार किये जाते हैं। इधर दक्षिण अफ्रीका के पास ही पोर्तुगीज़- पूर्व अफ्रीका है। पड़ोस की विषैली वायु से यहाँ के भारतीयों का भी दम घुट रहा है। पहले जहाँ पोर्तुगीज सरकार भारतीयों को यहाँ बसने के लिए प्रोत्साहित करती थी, वहाँ अव दूध की मक्खी की भाँति निकाल फेंकने पर तुल गई है। नवागत भारतीयों का प्रवेश तो वर्जित है ही, किन्तु पुराने प्रवासी भी यदि यहाँ से एक बार समुद्र को पारकर स्वदेश गये तो फिर उधर से लौटना बहुतों के लिए असम्भव हो जाता है। इस नीति से यहाँ की भारतीय ग्रावादी दिन पर दिन घटती जाती है। जंज़ीवार नाम मात्र के लिए सुलतान का है - वास्तव में वहाँ के शासन की बागडोर अँगरेज़ों के हाथ में है । वहाँ लौंग के व्यापार के सम्बन्ध में जो नया कानून बनाया गया है और जिसके कारण असन्तोप की लहर उठ रही है वह वास्तव में भारतीयों के हितों का विघातक है ।
इस प्रकार सारे संसार में प्रवासी भारतीयों के भाग्याकाश पर आपत्तियों की घटा घिरी हुई है । इधर भारत में जब से सत्याग्रह-संग्राम स्थगित हुआ और कांग्रेस दल ने लेजिस्लेटिव असेम्बली में प्रवेश किया तब से असेम्बली में प्रवासियों की कुछ चर्चा होने लगी है | प्रवासी विभाग के सर्वेसर्वा हैं कुँवर सर जगदीशप्रसाद जी और सर गिरजाशंकर वाजपेयी, किन्तु इनके जिम्मे भूमि, स्वास्थ्य
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[ भाग ३८
और शिक्षा विभाग भी है, अतएव प्रवासी विभाग के लिए एक विशेष सेक्रेटरी की नियुक्ति हुई है । इस पद पर श्री मेनन की जगह अब श्री बोज़मेन नियत हुए हैं । सर वाजपेयी आदि प्रवासियों के प्रति विशेष सहानुभूति रखते हैं और उनके प्रश्न पर उचित ध्यान भी देते हैं, लेकिन असल में भारत सरकार ही कमज़ोर है। उसका कोई स्वतन्त्र सत्ता तो है नहीं, वह साम्राज्य सरकार के अधीन है और उसके आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य | केनिया, युगाण्डा, फ़ीजी, मारिशस, ट्रिनीडाड, डेमरारा यदि क्राउन कलोनी हैं, उनके नियन्त्रण और शासन की व्यवस्था इंग्लेंड के औपनिवेशिक सचिव के आदेशों से होती है । अतएव इन उपनिवेशों में भारतीयों के प्रति होनेवाले दुर्व्यवहारों का खुल्लमखुल्ला विरोध करना मानो अपने स्वामी साम्राज्य सरकार के सामने विद्रोह करना होगा और इस स्थिति में भारत सरकार वास्तव में दया का पात्र है ।
स्वराज्य प्राप्त दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि उपनिवेशों के विषय में साम्राज्य सरकार का यह बहाना चल सकता है कि वे अपने देश की अान्तरिक व्यवस्था करने में स्वतंत्र हैं और उनके कामों में हस्तक्षेप करना साम्राज्य सरकार की शक्ति और सत्ता के बाहर की बात है । परन्तु क्राउन कलोनियों के बारे में यह कथन कहाँ तक युक्तिसङ्गत हो सकता है ? भारत स्वराज्याधिकार से वंचित है और उसके शासन का असली सूत्र ब्रिटिश
[ लोरेन्सो मासि के एक जंगल की झोपड़ी में प्रवास M भाई वैदिक विधि से हवन कर रहे हैं ।]
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