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चिन्ह ।
उल्लेख, विशेष रूप से ब्राह्मण ग्रन्थों का वह भाग जिसमें मपि शिक्षितं वत्सेन---उत्त० ३, मा०९, 4 (व्या०) पूर्वोक्त निदेश या विधि की व्याख्या, चित्रण या उसके आगामी नियम में पिछले नियम की पुनरुक्ति या पूर्ति, टीका-टिप्पण निहित हैं और जो स्वयं कोई विधि या पिछले नियम का आगामी नियम पर निरन्तर प्रभाव
निदेश नहीं है 4 समर्थन 5 विवरण, अफवाह। ____5 पुनरुक्ति-वर्णानामनुवृत्तिरनुप्रासः । अनुवादक, वादिन् (वि.) [अनु+वद्+ण्वुल-णिनि वा] | अनुवेधः =तु० अनुव्याधः । 1 व्याख्यापरक 2 समरूप, समस्वर ।
अनुवेलम् [अव्य०] [प्रा० स०] कभी-कभी, बारंबार, अनुवाद्य (वि.) [अनु+व+णिच् + यत् 1 व्याख्येय, |
इति स्म पृच्छत्यनुवेलमादृतः --रघु० ३।५ । उदाहरणसापेक्ष 2 ( व्या० ) वाक्य में किसी उक्ति
अनुवेशः-शनम् [अनु+विश्+घञ, ल्युट् वा ] 1 अनुका कर्ता, 'विधेय' का विपरीतार्थक जो कि कर्ता के
गमन, बाद में दाखिल होना; 2 बड़े भाई के विवाह विषय में कुछ विधि या निषेध करता है, वाक्य में
से पहले छोटे भाई का विवाह ।। पहले से ज्ञात अनुवाद्य या कर्ता की पुनरुक्ति विधेय
अनुव्यंजनम् [ अनु+वि+अं+ल्युट् ] गौण लक्षण या के साथ संबंध जतलाने के लिए की जाती है, अतः उसे वाक्य में पहले रक्खा जाता है-अनुवाद्य-| अनुव्यवसायः [ अनु+वि+अव+से+घञ्] (न्या० में) मनुक्त्वैव विघयमुदीरयेत् ।
प्रत्यक्ष का बोध या चेतना; (वेदा० में) मनोभाव अनुवारम् (अव्य०), समय समय पर, बार बार, फिर या निर्णय का प्रत्यक्षीकरण । दोबारा।
अनुव्याधः-वेधः [ अनु+व्यध--घा , विध+घा वा] अनुवासः-सनम् [अनु+वास्+घा ल्युट वा] 1 सामा- 1 चोट पहुँचाना, छेदना, सूराख करना—न हि कीटानु
न्यतः धूप आदि सुगंधित द्रव्यों से सुवासित करना 2 वेधादयो रत्नस्य रत्नत्वं व्याहन्तुमीशाः –सा० द० कपड़ों के किनारे डुबोकर सुगंधित बनाना 3 (°न: १, 2 संपर्क, मेल—मुखामोदं मदिरया कृतानुव्याधभी) पिचकारी, तेल का एनिमा करना, या स्निग्ध मुद्वमन्-शि० २।२०, 3 मिश्रण 4 बाधा डालना। बनाना।
अनुव्याहरणम्,-व्याहारः [अनुव्या+ह+ल्युट, घा वा] अनुवासित (वि०) [अनु+वास्+क्त] धूपित, धूनी दिया ___1 पुनरुक्ति, बारंबार कथन 2 अभिशाप, कोसना। हुआ, सुगंधित किया हुआ।
अनुवजनम्-व्रज्या [ अनु-+-व्रज् । ल्युट्, क्यप् वा ] अनुसरण, अनुवित्तिः (वि.) [अनु+विद्+क्तिन् ] निष्कर्ष, प्राप्ति। अनुगमन, विशेषतया बिदा होता हुआ अभ्यागत। अनुविद्ध (वि.) [ अनु+व्यध्+क्त] 1 छिदा हुआ, अनुव्रत (वि०) [प्रा० स०] भक्त, निष्ठावान्, संलग्न
सूराख किया हुआ, कीटानुविद्धरत्नादिसाधारण्येन (कर्म० या संब० के साथ) । काव्यता-सा० द. 2 ऊपर फैला हुआ, अन्तर्जटित, अनुशतिक (वि०) [अनु+शत +ठन् ] सौ के साथ या पूर्ण, व्याप्त, मिश्रित, मिलावट वाला, अन्तमिश्रित-- | सौ में मोल लिया हुआ। सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि रम्यम-श० श२०, 3 अनुशयः [ अनु+शी+अच् ] 1 पश्चात्ताप, मनस्ताप, खेद, संयुक्त, संबद्ध 4 स्थापित, जड़ा हुआ, चित्रित-रत्ना- रंज, नन्वनुशयस्थानमेतत्-मा० ८,-इतो गतस्यानुनुविद्धार्णवमेखलाया दिश: सपत्नी भव दक्षिणस्या:--- शयो मा भूदिति-विक्रम० ४, शि० २।१४; 2 अति रघ० ६।६३।
वैर या क्रोध-शिशुपालोऽनुशयं परं गतः-शि० १६। अनुविधानम् [ अनु+वि+धा + ल्युट् ] 1 आज्ञाकारिता 2 २-यस्मिन्नमुक्तानुशया सदैव जागति भुजंगी-मा० आदेशादि के अनुरूप कार्य करना।
६।१; 3 घृणा 4 गहरा संबन्ध, जैसा कि क्रमागत, अनविधायिन् (वि.)[अन--वि+घा+णिनि आज्ञाकारी, (किसी पदार्थ से) गहन आसक्ति 5 (वेदा० में) विनीत ।
दुष्कर्मों का परिणाम या फल जो कि उनके साथ अनुविनाशः [अनु+वि+न+घञ ] बाद में नष्ट होना। संयुक्त रहता है और पुनर्जन्म से अस्थायी मुक्ति का अनुविष्टंभः [ अनु+वि+ स्तंभ+घञ] फलस्वरूप बाधा उपभोग कराके फिर जीव को शरीरों में प्रविष्ट करता का होना।
है; 6 क्रय के मामलों में खेद जिसे पारिभाषिक रूप अनुवृत्त (वि०) [अनु+वृत्+क्त ] 1 आज्ञाकारी, में 'उत्सादन' कहते हैं दे० क्रीतानुशय । अनुगामी 2 अबाध, निरन्तर।
अनुशयान (वि.) [ अनु+शी+शानच् ] खेद प्रकट अनुवृत्तिः (स्त्री०) [ अनु+वृत्+क्तिन् ] 1 स्वीकृति 2 करता हुआ, -ना नायिका का एक भेद, यह नायिका
आज्ञाकारिता, अनुरूपता, अनुगामिता, नैरन्तर्य 3 अपने प्रेमी के वियोग का खयाल करके उदास और अनुकूल या उपयुक्त कार्य करना, आज्ञापालन, मौन खिन्न रहती है। सहमति, सन्तुष्ट करना, प्रसन्न करना-कांता चातुर्य- | अनुशयिन् (वि.) [ अनुशय+णिनि ] 1 अनुरक्त, भक्त,
मान ।
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