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मुणिसुव्वदणाहो त्थु, पोम्मा सुमित्त णंदणो
राजगिहे ण राजेज्जा, तिहुवणे पहू हवे॥28॥ पद्मा और सुमित्रा के पुत्र मुनिसुव्रतनाथ न केवल राजग्रह में प्रसिद्ध होते, अपितु वे त्रिभुवन में लोकप्रिय प्रभु बन जाते हैं।
वप्पिला विजयो पत्तो, णमिणाहो जगे हवे।
दसमि-सुक्क-आसाढे, मिहिला ति जगे पहू॥29॥ आषाढ़ शुक्ला दशमी के जन्मे नमिनाथ वप्रिला एवं विजय का पुत्र तीनों लोक का प्रभु हो जाता है। .
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समुद्द-विजयो राया, सिवा सिव पही सुदं।
दाएज्ज णेमिणाहो सो, सोरियपुर-सोरियो॥30॥ शौर्यपुर का शौर्य समुद्रविजय राजा था, शिवा रानी उसकी पत्नी शिवपथी सुत को जन्म देती है वे नेमिनाथ जग के आधारभूत हुए।
31 अस्ससेणस्स वामाए, प्रभु-पासो हवे जगे।
वाराणसी-पुरे णंदो, तिहुवणे हु पासए ॥31॥ वाराणसी नगरी एवं तीनों लोक जब प्रभु पार्श्व जग में आए तब अश्वसेन और वामा के आनंद तीनों लोकों का आनंद बन गया।
32 वड्ढमाणो त्तु वड्डेज्जा,सो वीर अदि-वीरए।
सम्मदी तिसलाणंदो, सिद्धत्थस्स सुदो महा ॥32॥ वर्धमान, वीर, अतिवीर, सन्मति और महावीर बढ़ते हुए सिद्धार्थ के लिए और मातुश्री त्रिसला के राजदुलारे पुत्र कहलाए।
33 सव्वेसिं अरहताणं, सिद्धाणं सिद्धठाणगं।
तेसिं मग्ग-गणिंदाणं, साहूणं सव्वसाहगं॥33॥ मैं सभी अरहंतों, सिद्धस्थान के सिद्धों, उनके मार्ग में प्रवृत्त गणीन्द्र, एवं सर्वसाधकों को नमन करता हूँ।
28 :: सम्मदि सम्भवो