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क्रियाओं से अपने को शान्त बनाते हैं।
50 सो सेंधवं च वडवाणि सुगंधवाणिं सोणं च पच्छ पवसेज्ज हु धूलियं च। मालं हु णंद सिरडिं पडि गच्छवंतो
चिट्टेदि एत्थ सुद आदि-कचं कुणेदि॥50॥ यह संघ सेंधवा, बड़वानी, गंधवानी, सोनगीर आदि के पश्चात् धुलिया (महाराष्ट्र) के नगर मालेगांव, नांदगांव एवं शिरडी को प्राप्त हुआ। यहाँ गतिशील संघ श्रुतपंचमी (12 जून 2005) को आदिसागर का आचार्य पदारोहण, स्मृति दिवस एवं केशलुंच आदि करता है। सिद्धखेत्त-गजपंथा
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सिद्धस्स खेत्त गजपंथ-सुठाण मुत्तं णम्मेदि सो विजय सुप्पह णंदि णंदि। आचल्ल देसण बहुल्ल बलं च सत्तं
अत्थं महा किरदि वे चदुमास-ठाणं ॥1॥ सिद्धों का स्थान गजपंथा सिद्धक्षेत्र है। यहाँ परसंघ विजय, अचल, सुप्रभ, सुदर्शन, नंदी, नंदीमित्र आदि सातों बलभद्रों को नमन करता है। यहाँ पर आचार्य महावीरकीर्ति ने दो चातुर्मास किए थे।
52 अत्थेव लोणि गुहचामर दसएज्जा चेराइपुंजिसम-पाउस-खेत्त-अस्सिं। सिक्खाण खेत्त-गुरु-दार-विसेस-वत्ता
संघस्स दंस कमलो कमलेस संतो॥2॥ यहाँ पर चामर-लेणी की गुफा के दर्शन किए। यह चेरापूंजी की तरह वर्षा का क्षेत्र है। यहाँ सिक्खों के गुरुद्वारे में धर्म चर्चा हुई। कमलमुनि कमलेश मुनिसंघ के दर्शन के लिए यहाँ आए।
53 णीरम्हि एस सिरिसंघ-चलंत-गामा पत्ते भिवंडि तध चिंडगियाण दंसं।
सम्मदि सम्भवो :: 231