Book Title: Sammadi Sambhavo
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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पाढवा वि मेहोत्थि, पतापे चरणं हवे । गुणो त समाधित्थं, चीतरी - तव - सायरो ॥16 ॥
पाढ़वा में मेघसागर, प्रतापगढ़ में चरणसागर, प्रतापगढ़ में गुण सागर एवं चीतरी में तपसागर समाधिस्थ हुए।
सव्वण्डु करगामाए, पाससागर जेपुरे पउम - बडगामंहि, रिसहो साग - जोगिए ।
मुनिश्री 108 सर्वज्ञसागर करगुवां में समाधिस्थ हुए।
मुनिश्री 108 पार्श्वसागर की जयपुर (2015) में समाधि हुई ।
मुनिश्री पद्मसागर की बड़ागाँव ( दिल्ली - 1995 ) में समाधि हुई । मुनिश्री 108 ऋषभसागर योगीन्द्रसागर बनकर सागवाड़ा (2011) में समाधिस्थ ।
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अजिदस्स समाही हु, रयणो मुणि वि गओ । गोदमो वि सुवोही हु, गजिंद - सुमणो अवि ॥17॥ णाणस्स समाही वि, जय-सिद्धंत सायरो
सुविहि- संग-संघत्थे, सील- आणंद - सागरो ॥18॥ सुह-सदे हु संलीणे, सिद्धो सिवो समाहि सुद्धो अत्थि सदाझाणी, संवेगो त्थि समाहिए ॥ 19 ॥ संति सारस्सदो सुज्जो, अस्सिं संघे हु राजदे । सुमदि समणो साहू, समप्पणसमाहिए ॥20 ॥
अजितसागर की समाधि हो गयी । रयणसागर समाधिस्थ हो गए हैं। गौतम, सुबोध, सुमन, गजेन्द्र एवं ज्ञानसागर समाधिस्थ हो गये । जय, सिद्धांत, सुविधि अभी विद्यमान हैं । शीलसागर समाधि को प्राप्त हैं। सिद्धसागर, शिवसागर समाधिस्थ हो गये । शुभसागर पिडावा में समाधिस्थ
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हुए ।
संवेगसागर पटना में समाधिस्थ हुए। शान्तिसागर, सारस्वतसागर नहीं है। सूर्यसागर विद्यमान हैं। सुमतिसागर, श्रमणसागर, समर्पणसागर समाधिस्थ हो गये ।
270 :: सम्मदि सम्भवो

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