Book Title: Sammadi Sambhavo
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 279
________________ आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज आचार्यश्री सुनीलसागर जी मध्यप्रदेश के सागर जिलान्तर्गत तिगोड़ा नामक ग्राम में श्रेष्ठी भागचन्द जैन एवं मुन्नीदेवी जैन के यहाँ अश्विन कृष्ण दशमी, वि.सं. 2034, तदनुसार 7 अक्टूबर 1977 को जन्में बालक सन्दीप का प्रारम्भिक शिक्षण किशनगंज (दमोह) में तथा उच्च शिक्षा सागर में सम्पन्न हुआ। सत्संगति एवं अध्यात्मज्ञानवशात शास्त्री एवं बी.कॉम, परिक्षाओं के मध्य आप विशिष्ट रूप से वेराग्योन्मुख हुए। परिणामस्वरूप 20 अप्रैल, 1977, महावीर जयन्ती के पावन दिन बरुआसागर, (झाँसी) में आचार्यश्री सन्मतिसागर जी द्वारा आपको जैनेश्वरी दिगम्बर दीक्षा प्राप्त हुई, और आप मुनि सुनीलसागर नाम से विख्यात हुए। माघशुक्ल सप्तमी दिनांक 25 जनवरी, 2007 को ओरंगाबाद (महा.) में अपने गुरु के करकमलों से आचार्य पदारोहण हुआ। आपको मृदुभाषी, मितभाषी, बहुभाषाविद्, उद्भट विद्वान, उत्कृष्ट साधक, मार्मिक प्रवचनकार, अच्छे साहित्यकार और समर्पणता देखकर तपस्वी सम्राट गुरुवर ने समाधि से पर्दू अपना पट्टाधीश पद दिया, 24 दिसम्बर को समाधि के दिन पट्टाचार्य पद दिया, 24 दिसम्बर को समाधि के दिन पट्टाचार्य पद की औपचारिकताएँ हुईं। 26 दिसम्बर, 2010 को कुंजवन में विधिवत घोषणा हुई, उसी दिन गुलालवाड़ी में विद्वान-श्रेष्ठि-जनता के बीच पट्टाचार्य पदारोहण समारोह किया गया। आप क्रमिक दीक्षाएँ प्रदान करते हैं, अर्थात् ब्रह्मचारी, क्षुल्लक, ऐलक फिर मुनिदीक्षा प्रदान करते हैं। आपके संघ में अभी 55 पिच्छीधारी साधक हैं। इतने अल्प समय में आपको 19 उपाधियों से विभूषित किया जा चुका है। अभी वर्तमान में प्राकृत के ग्रन्थ प्रणयन के साथ प्राकृत भाषा में प्रवचन करनेवाले आप एकमात्र साधु हैं।

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