Book Title: Sammadi Sambhavo
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 270
________________ आचार्य श्री उदयपुर (2003) खमेरा (2004) मुंबई (2005) लासुर्णे (2006) ऊदगांव (2007-8) इचलकरंजी (2009) एवं कोल्हापुर (2010) में तक्र (छांछ-मठ्ठा) एवं जल ही लेते अहारचर्या में। वे सदैव शान्त, प्रशान्त, मुनिधीश, तपेन्द्र सूरी ही बने रहते हैं। उवाहि-जुत्तो सूरी 10 अज्झप्प-जोगि-समराड-उवाहि-जुत्तो इट्टावए रदण-आइरियो वि भिंडे। चारित्तचक्कवरदी जबलेपुरे सो दाहोद-भारतय-गोरव-भूसएज्जा॥10॥ आचार्य श्री इटावा (म. प्र. 1977) में अध्यात्म योगी सम्राट से अलंकृत हुए। भिंड (1978) में आचार्य रत्न, जबलपुर (1979) में चारित्रचक्रवर्ती एवं दाहोद (1982) में भारतगौरव से विभूषित हुए। 11 संताइरामपुर-आइरियो सिरो वि। धम्मो दिवायर-इमो अवि खंडवाए। सो तावसी वि समराडय-केसरम्हि सिद्धंतचक्कवरदी अजमेर-भागे॥11॥ आचार्यशिरोमणि पद से अलंकृत हुए संतरामपुर में (1982) 2. खंडवा 1987 में धर्मदिवाकर पद से विभूषित हुए। __ आचार्य सन्मतिसागर जी केशरिया (ऋषभदेव-1987) में तपस्वी सम्राट कहलाए। अजमेर (1984) में सिद्धान्त चक्रवर्तीपद को प्राप्त हुए। 12 दिल्ली महातव-विभूदि-समण्णराया चंपापुरे समण चक्किवरल्ल-जादो। चारित्तचूड-मणि-भूसि-पटण्ण-एसो वच्छल्ल-रण्ण-पुर-कोट-विभूसएज्जा॥12॥ 1. दिल्ली (1995) में महातपोविभूति श्रमणराज 2. चंपापुर (1998) में श्रमणचक्रवर्ती - ल 268 :: सम्मदि सम्भवो

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