Book Title: Sammadi Sambhavo
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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समाहित्थ अज्जिगा
29, 30
सुपास-जस- वीराओ, संतिअजिद - देवए । चारित्तय अणंताओ, सरल - णाण - सग्गए ॥ 29 ॥ जय चंद य सुज्जाओ, सुमदि अखया अवि । सुवोह - साहणा-भद्दा, सेयंस य सुदत्तउ ॥30॥ समासावेण संजादो, समाधिमरणं सुहं सिरि-संभव अज्जिए, णेमीमदि सुबुद्धिअ ।
सुपार्श्वमती, यशोमती, वीरमती, शांतिमती, अजितमती, देवमती, चारित्रमती, अनंतमती, सरलमती, ज्ञानमती, चन्द्रमती, जयमती, सूर्यमती, सुमतिमती, अक्षयमती, सुबोधमती, साधनामती, सुभद्रमती, श्रेयांसमती, सुदत्तमती, श्रीमती, संभवमती, नेमीमति, सुबुद्धिमति का समभाव पूर्वक शुभ समाधिमरण हुआ ।
साहणारत्ता अज्जिगाओ
दंसणमदि वा जुण्णी, सरण - सीदलाकरी ।
सुविस्सा - सुह-सत्थी तु, सुकाल - सदया सुदा ॥30॥
आर्यिका दर्शनमती की उदयपुर में समाधि दीवाली - 2017 को हो गई । शरणमती, शीलतमती, समयमती, सुविश्वामती, शुभमती, स्वस्तिमती, सुकालमती, सदयमती, एवं श्रुतमती आर्यिका साधनारत हैं।
खुल्लग
31
साहण-समिदी- बोहो, सुर - सुरदणो अवि । सम्मग्गासुरिंदो थि, सुभव्व खुल्लगो ण हि ॥31॥
क्षु. साधनसागर, समितिसागर, सुबोधसागर, सुरसागर, सुरत्नसागर, सन्मार्गसागर, सुरेन्द्रसागर एवं क्षुल्लक सुभव्यसागर अब नहीं है ।
32
संतसायर - सग्गेज्जा, सतसागर सग्गए ।
म्मिल - परिणामी जे, भव्वा भव्वत्त जायदे ॥32॥
क्षुल्लक संतसागर समाधिस्थ हो गये सतसागर भी ।
आचार्यश्री की सभी भव्यात्माएँ निर्मल परिणामी भव्यता को प्राप्त हैं ।
272 :: सम्मदि सम्भवो

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