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22 तेजस्सि-साहग-परो हु विरत्त-सूरी अट्ठोववास-गुरुणो अडअण्हिगम्हि। मटुं जलं गुरुवरो इध पारणाए
पच्छा पुणो हु उववास-दुवे कुणेदि॥22॥ आचार्य सन्मतिसागर अति तेजस्वी, परमसाधक एवं विरक्त अष्टाह्निका में आठ उपवास के पश्चात् पारणा, फिर दो उपवास कर लेते हैं।
23 अंजुल्लिए इग हु घुट्ट-सुतक्क णीरं दाणेज्ज सावग-गणा बहु-अत्थ अत्थि। अस्सुप्पवाह गद भासि इमं सरीरं
भत्ति त्ति चत्त परिचत्त कधोसहिं च ॥23॥ पारणा में एक चूंट छांछ और जल दान के लिए अनेक श्रावक उपस्थित थे। इधर अश्रु प्रवाह निर्ममत्व देही कह उठते-इस शरीर को शीघ्र छोड़ देना चाहिए। इसे कैसी औषधी की आवश्यकता है।
24 मोउड्ड सत्तमि-दिवे कचलुंच-पुव्वे दिक्खा वि खुल्लिगि तए इग-एग अज्जी। सल्लेहणा रद सुमंगल-मंगलीयो
जादा समाहि-मदि संति-इधेव पच्छा ॥24॥ मुकुट सप्तमी (15 अगस्त) के दिन केशलोंच पूर्वक तीन क्षुल्लिका एवं एक आर्यिका दीक्षा हुई। सुमंगलामती आर्यिका (21 अगस्त) को मंगल परिणामों से युक्त 'मंग' समाधि को प्राप्त हुई। इसके पश्चात् शान्तिमति आर्यिका की (3 सितंबर) समाधि हुई।
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कोल्हापुरे परम-उच्छव-जुत्त सव्वे पज्जूसणस्स सम-भत्ति-पहाणदाए। मज्झे जयंति गणि-आदि-सुमण्ण माणा
धण्णा कुणेति जणमाणस-अप्प-अप्पे ॥25॥ आचार्य आदिसागर की (143वा) जन्म जयंती एवं स्मृति दिवस उत्सव युक्त कोल्हापुर में (12 से 22 सितम्बर) पर्युषण पर्व को मनाते हुए जन मानस अपने जीवन को धन्य करते हैं। 260 :: सम्मदि सम्भवो