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संघ के साथ में स्थित कुंजवन में महामस्तभिषेक की शोभा बढ़ा रही थीं।
15 एलक्कगो मुदितसागर-एगमेत्तो पुष्फो सुजोग-सत-पास-सुभब्व-भव्वो। खुल्लो-विधेयसुविमल्ल-सुरिंद-राजे
सम्मो मदी-सुमदि-सोहग-कुंजठाणे15॥ इस कुंजवन के महोत्सव में एकमात्र ऐलक-मुदित सागर उपस्थित थे। पुष्प, सुयोग,सत, पार्श्व, भव्य-सागर से यह स्थल भव्य था। विधेय, सुविमलसागर सुरेन्द्र जैसे क्षुल्लक सम्यक् मति युक्त सुमतिसागर से कुंजवन शोभायमान था।
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भट्टारगो वि लखमी बहुबंहचारी राजेज्ज बंहचरणीउ पुणीद-धारी। सेट्ठी-तिलोग-अजिदो वि सुरेस-आदी
संदीव-संपत-सुमेरय-संति-इंदो॥16॥ इस महोत्सव में भट्टारक लक्ष्मीसेन, अनेक ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणियां भी पुनीत दृष्टि ही स्थित थीं, यहाँ श्रेष्ठी त्रिलोकचंद्र, अजितकुमार, संदीप, संपत, सुमेर, शान्ति एवं इन्द्रजीत आदि भी शोभायमान थे। .
17 . . जावो हवेदि तिय वादण-पुण्ण-रूवे चंदं च सुज्ज-कल-मंत-वि-अंकपासं। णेत्तुम्मिलं सुरियमंत-सु-वड्ढमाणं
अग्घग्घदाण-गुणरोवण-पूज-अटुं॥17॥ यहाँ कुंजवन के महामस्तकाभिषेक के समय जाप भी तीन घंटे तक चला, फिर चन्द्र, सूर्यकलामंत्र, अंकन्यास, नेत्रोन्मीलन, सूरि-मंत्र, वर्धमान-मन्त्र, अर्घदान, गुणारोपण एवं पूजाष्टक विधि विधान को किया गया।
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मुम्बेइवासि-अणिलो सिरिचंदुलालो कल्लाण-केवलसुणाण-महं च अच्चं मत्थाहिसेग-कुणमाण-इधे गुरुंच वंदेज्ज णंदणवणं सुरइंद तुल्लो॥8॥
258 :: सम्मदि सम्भवो