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आचार्य श्री सन्मतिसागर के दीक्षा दिवस (49वें) कार्तिकी अष्टाह्निका द्वादशी पर तीन दीक्षाएँ हुईं। सुबंधसागर, सुबुद्धसागर ये दो मुनि एवं एक सुधर्म निष्ठा सुधर्ममती आर्यिका हुई। (7 दिसंबर 2010) में गुरुणां गुरु' आचार्य आदिसागर का गुणानुवाद हुआ। अनेक मुनियों के केशलोंच हुए। गुरुवर का 18 दिसंबर को अंतिम केशलोंच हुआ। गुरुस्स गुरु विजोगो
30 खीणे वि देह-परिणाम-विसुद्ध जुत्तो सो सिंहवित्ति मुणिराय-समाहि-भावो। सुज्जोदए पण पचॉस जपेज्ज सूरी
सो ओं णमो परम-सिद्ध पहूण णामं ॥30॥ आचार्य श्री क्षीण देही, फिर भी परिणामों से विशुद्ध सिंहवृति वाले 5.50 बजे ऊं नमो सिद्धेभ्यः जपते हुए 24 दिसंबर 2010 को समाधि को प्राप्त हो जाते हैं।
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अहं ति हंच णिअप्प सहाव लीणो गंधो ण रूव रस-फास-विवण्ण हीणा। सुद्धो पबुद्ध परिणामि पहा वि-अप्पा णाणा हु णंद-अणुभूदि-पहाण-तच्चं ॥31॥ मैं हूँ अपने में स्वयं पूर्ण, पर की मुझमें कुछ गंध नहीं। मैं अरस अरूपी अस्पर्शी, पर से कुछ भी संबंध नहीं॥ मैं शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध एक, पर परिणति से अप्रभावी हूँ। स्वात्मानुभूति से प्राप्त तत्त्व, मैं ज्ञानानंद स्वभावी हूँ॥
32 जो अत्थिं अत्थ हु गुरुस्स गुरु त्थि जोगो सोगे असोग-छवि-देसदि वीदरागं। सो कुंज-कुंजवण-खेत्त-गुरुं समीवं
अंते हु अंत-किरियं परिलब्भदे वि॥32॥ . जो होता है गुरु का गौरव वह वियोग या शोक दशा में वीतराग छवि को देखता है। उन्हें कोल्हापुर से कुंजवन (40 किमी. दूर) कुंजक्षेत्र में उस स्थान ले जाया जाता है जहाँ गुरुओं के गुरु आचार्य आदिसागर की समाधि थी। उस स्थान पर वे आचार्य सन्मतिसागर की अंतिम क्रिया को प्राप्त होते हैं।
262 :: सम्मदि सम्भवो