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सेट्ठी पगास मुणिभत्त इधेव घादं
कुल्हार-मीरयदहीसर-पत्त-संघो॥53। यह श्री संघ नीर (पाउष) में ग्रामानुग्राम चलता हुआ भिवंडी आया। यहाँ चीटियों के दंश को प्राप्त हुआ। यहीं मुनि भक्त प्रकाश चन्द्र छावड़ा घायल हो गये। संघ कोल्हार, मीरा आदि के पश्चात् दहीसर पहुंचा। मुंबई चाउम्मासो 2005
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अटुण्हिगे मुणिवरो अडवास-जुत्तो सो आदिणाह णयरं इध मंगलं च। बोरीबलिं कुणदि चाउयमास-ठाणं
सेट्ठी-बहुल्ल-णयरे णय-सील-संघो॥54॥ मुंबई के उपनगर आदिनाथनगर को प्राप्त संघ आठ उपवास युक्त गुरुवर को अष्टाह्निका में विश्राम देते हैं। यहाँ इस श्रेष्ठी बहुलता वाले नगर में श्री संघ बोरीबली में चातुर्मास की स्थापना करता है, तथा यहाँ नय से विचारशील होता।
55 ओमो सरूव-सिहरो रमणो कबूरो ते आर के मदण-लाल सुमेर आदी। कल्लाण-दीवग-रतिक्क सुसेट्ठि अग्गी
ठाविज्ज सम्मकलसं च सुमेर-सेट्ठी॥55॥ श्रेष्ठी श्री ओमप्रकाश, अनिल, स्वरूपचंद्र, शिखरचंद्र, रमणलाल, आर. के. जैन, मदनलाल, सुमेरचंद्र, कल्याणमल, दीपक, रसिकभाई आदि श्रेष्ठी अग्रगामी हुए। सुमेरचन्द्र मदनलाल चूड़ीवाल कलकत्ता ने मंगलकलश की स्थापना की।
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मूलोत्तराणि-गुण-णायग-साहु-साहू णंदीसरे जिणगिहे परिमंडवम्हि। ते केसलुंच विणु साहु ण मोक्ख-तेसिं
वेरग्ग-वड्डण-इमो किरिया हु अत्थि॥56॥ साधुओं की सम्यक् क्रियाएँ मूलोत्तर गुण हैं। सूरी, साधु सभी उन्हें पालते हैं। वे केशलोंच बिना साधु नहीं और साधु बिना उनके लिए मोक्ष नहीं। यह वैराग्यवर्धन की क्रिया है। इसलिए इस नंदीश्वर द्वीप के जिनालय प्रांगण में यह क्रिया करके वे साधु, साधुत्व का परिचय दे रहे हैं। 232 :: सम्मदि सम्भवो