Book Title: Sammadi Sambhavo
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 246
________________ तेत्तीस वि चदुतिंस कला वि जुत्ता दंसेज्जदे गुरुकुलं च समंत - णंदिं ॥28॥ यहाँ की इन्द्रसभा के शिल्प कला पूर्ण है । 32, 33 एवं 34वीं गुफा के कला शिल्प जैन संस्कृति की व्याख्या करते हैं । यहाँ समंतभद्र द्वारा स्थापित एवं आर्यनंदी द्वारा संपोषित गुरुकुल का भी संघ दर्शन करता है । 29 कण्णड्डू पत्त- - मुणिराय - सुवीर-जम्म दिक्खं जयंति वि सुणील- इगारहं च । उच्छाह-पुण्ण जणमाणस - मण्णदे वि आसीस-सूरि- गद- सावग-धम्म- -furt 1129 11 आचार्य श्री कन्नड आए। यहाँ पर 2606 वीं महावीर जयन्ती मनाई गयी । एलोरा में मुनि सुनीलसागर का ग्यारह ( 11वा) दीक्षा दिवस मनाया गया। आशीष प्राप्त श्रावक एवं धर्मनिष्ठ जनमानस उत्साह युक्त इसे मनाते हैं । 30 औरंगबाद - णयरे सुपसण्ण - साहू सम्मं समाहिमरणं कुणदे हु अत्थ । साहस्स- सावग-समूह-णमंत - सड्ढे अप्पेलमाह अरहंत - पुरं च पत्ते ॥30॥ औरंगाबाद के एक ग्राम में सुप्रसन्नसागर सम्यक् समाधिमरण को करते है, वहां पर हजारों श्रावक श्रद्धा से नमन करते हैं । फिर अप्रैल में अरहंत नगर को संघ प्राप्त होता है। ऊदगांव चाउम्मासो (2007-2008) 31 सो सम्मदी परम-सम्मदि - दाण - जुत्तो सिस्सो विराग - मुणिरायविणिच्छयो वि । अज्जीइ-आदि- सत-सत्तर पिच्छिजुत्ता कल्लाण - जुत्त परिजोजण पुण्ण जादा ॥31॥ आचार्य सन्मतिसागर जी परम सन्मति दान युक्त थे। तभी तो उनके शिष्य आचार्य विरागसागर, आचार्य निश्चियागर आदि मुनियों एवं अनेक आर्यिकाओं सहित 77 पिच्छी युक्त कल्याणकारी योजनाओं को भी साकार रूप देने में समर्थ हुए। 244 :: सम्मदि सम्भवो

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