________________
47
उग्गारए वि उववास णवं च किट्ट हट्टि सिरे हु अणुपत्त-विघाद-जुत्तो। पादे विहार करणे असमत्थ सूरी
आधार विण्णु चरएज्जदि सूरसूरी॥47॥ आचार्य सन्मतिसागर जी शिरहट्टी में घटना को प्राप्त हुए वे उगार में नौ उपवास करके आए थे। पद विहार करने में असमर्थ आचार्य श्री आधार बिना ही विहार को प्राप्त होते हैं।
48 वागे हु वाडि सुद पंचमि आदि सूरिं झाणंतसूरि मइ-मास-इमो हु संघो। सूरी-पदेहि चरमाण-सुवेदणे हु
गुप्पिं सिरं च पुण अंकलि गाम पत्तो।।48 ॥ 27-28 मई को वागेवाडी में श्रुतपंचमी पर्व एवं आचार्य आदिसागर के आचार्य पदारोहण स्मृति दिवस आदि को मनाते हैं। यह संघ आचार्य श्री के चलने में असमर्थ एवं वेदना युक्त होने पर भी सतत गतिशील बना, शिरगुप्पी के पश्चात् अंकली ग्राम को प्राप्त हुआ। इचलकरंजी चाउम्मासो (2009)
49
खंडेलवाल भवणे कलसं हविज्जा दो साहसे हु णव भत्ति सुभावणाए। णं पुण्णिमम्हि पुर आइरियाण वंदे
वीरस्स सासण-दिवं अड जुल्लईए।49॥ सन् 2009 का चातुर्मास इचलकरंजी के खंडेलवाल भवन में कलश स्थापना पूर्वक भक्ति भावना सहित स्थापित किया गया। गुरु पूर्णिमा पर पूर्व आचार्यों की वंदना, व वीरशासन, श्रुताराधना 8 जुलाई में की गयी।
50 सामुग्गघाद-परिसीलण-केवलीणं णाणं च सव्वय-तिलोक्क-सुदप्पण व्व। जाएज्ज साहु-गहिरा वि चरित्तणिट्ठा साहू सुणील सुद-सीलविचार-सीलो॥50॥
सम्मदि सम्भवो :: 249