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चौदह सम्मदी
कोल्हापुर चाउम्मासो
णाणं च धीर बल-वड्वण-सूरि-संतो णाणं च दंसण-चरित्त-तवं च वीरं। सिद्धिं च मग्ग-रदणत्तय-अप्प सुद्धिं
चागी रसाण विविहाण गहे हु तक्कं ॥ ये शान्त प्रकृति के आचार्य ज्ञान, धैर्य और आत्म बल वृद्धि के लिए ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार को अपनाते हैं। ये आत्मशुद्धि रूपी सिद्धि के मार्ग के लिए रत्नत्रय का आधार बनाते हैं। ये विविध रसों के त्यागी एक मात्र छांछ ही ग्रहण करते हैं।
दंसत्थ सावग गुणी गण साविगाणं सेट्ठीजणाण परिवार जणांण णिच्चं देहं णिरोही मणरोहि वची णिरोही ।
कम्मिंधणाणि डहिदुं चरएज्ज सच्चं ॥2॥ श्रावक-श्राविकाओं, श्रेष्ठीजनों एवं अनेक परिवारजनों का दर्शनार्थ आगमन बना रहता है।ये इन्द्रिय निग्रही, मनोरोधी एवं वचनरोधी कर्म रूपी ईंधन को जलाने के लिए सत्य का आधार बनाते हैं।
सम्मं चरेदि पडिगाम पदेस सूरी तेहत्तरे दिवस-जम्म खणे मणीण। सूरीण संघ-भडगारय लच्छिसेणो
आगच्छएंति वि णएंति ससुत्त-धारं॥3॥ - 254 :: सम्मदि सम्भवो