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समिति के सभी सदस्यों का 29 नवंबर को सम्मान कराते हुए कागवाडे मला से चंदूर की ओर विहार कर गया संघ।
61 समीपत्थे कवणूरे विहि-विहाण कुव्वदे।
परमेट्ठि-विहाणं च, विमलस्स समाहिणं ॥61॥ इचलकरंजी के पास स्थित कबनूर ग्राम में विधि विधान करते हुए विमलसागर जी की 19वाँ समाधि दिवस एवं पंच परमेष्ठि विधान को कराया।
62 पुण्ण-सुमरणे एत्थ, कुंथुसायर-संगदी।
गुरुभादा दुबे अज्ज, णमोत्थु कुसलंसदे॥62॥ आचार्य विमलसागर जी की पुण्यस्मृति (13 दिसंबर 2009) पर चंदूर में कुंथुसागर का मिलन हुआ। आचार्य सन्मतिसागर और आचार्य कुन्थुसागर जी दोनों गुरु भ्राता परस्पर नमोस्तु पूर्वक कुशलता पूछते हैं।
णूदण-वस्स उच्छम्हि, भत्तिजुत्ताजणा जणी
पसण्णसायरो एत्थ,पुष्पदंतो विराजदे॥3॥ सन् 2010 जनवरी 1 के दिन नूतन वर्ष पर भक्ति युक्त श्रावक श्राविकाएँ उपस्थित हुईं। पुष्पदंतसागर के शिष्य मुनि प्रसन्नसागर यहीं उपस्थित थे।
64 माहे सुधम्म-सूरी वि, णिच्छयो बहुसाहुणो
कुलभूसण-अज्जी वि, णेगा अज्जिग खुल्लिगा॥64॥ आचार्यपदारोहण माघ में सन्मतिसागर जी का मनाया जाता है। इसी समय आचार्य सुधर्मसागर एवं मुनि निश्चयसागर आदि बहुत ही साधु आर्यिका कुलभूषण एवं अनेक आर्यिका क्षुल्लिकाएँ भी यहाँ इस प्रसंग पर स्थित रहीं।
65 इध परम-तवस्सी संघ-संगो मुणीसो विहरदि सुदणिट्ठी णाण-चारित्त-दंसी। गुण-गणि-परमत्थी संत-संताण-पेही
पुर-णयर मणुस्सी-देस-एगंतरासी॥65॥ परमतपस्वी आचार्य श्री संघ के साथी श्रुतनिष्ठी ज्ञान चारित्र दर्शी गुणों के
252 :: सम्मदि सम्भवो