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गुप्ति, समिति, धर्म आदि की ओर अग्रसर परीषहों को सहते हुए भी सदा प्रसन्न रहते हैं।
36 आराहणेज्ज-गद-सज्झय-सील-संघो आगच्छि कुंजवण-सेणिग-णाण-चूडी। सोहग्ग-सील-अजिदो धणपाल-सेट्ठी
चादुम्ममास-तव-झाण-मुणीस-हेदुं॥36॥ संघ आराधना युक्त सदैव स्वाध्याय रत रहा। कुंजवन चातुर्मास में श्रेणिकशहा ज्ञानचंद्र मिण्डा, सुमेरचंद्र चूडीवाल, सौभाग्य पाटनी, अजित कासलीवाल, धनपाल आदि श्रेष्ठी तप, ध्यान शील मुनिवर के चातुर्मास के निमित्त बने।
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सड्ढेज्ज देव-गुरु सत्थ-पहाण-सेट्ठी सच्चाग-अज्जिग-समाहि-कुणंत धण्णा। जाएज्ज सिक्खण-सुभावण-गंधि-भागा
विज्जालयं परिसरं च विणिम्म छत्ते ॥37॥ देव, गुरु और शास्त्र प्रधान श्रद्धावाले श्रेष्ठी सुत्यागमती की दीक्षा एवं समाधि कराते हुए अपने जीवन को धन्य करने में सफल होते। शिक्षण क्षेत्र के दान में अग्रणी धनपाल, केशरीमल गांधी का परिवार विद्यालय परिसर छात्रों के विद्या अध्ययन हेतु समर्पित कर देते हैं।
38 अट्ट-अट्ट दिवसं च अपुव्व-जोगो णिव्वाण-पास मुउडो अवि अट्ट वज्जे। णिव्वाण-उच्छव-महुच्छव-पुण्ण संघे
एगतिसं च मुणिवंत, सुपिच्छ मज्झे ॥38॥ सन् 8-8-2008 के आठ का अपूर्व योग हुआ। आठ अगस्त को पार्श्व प्रभु का निर्वाण महोत्सव एवं मुकुट सप्तमी आठ बजे मनाई गयी। इस उत्सव के साथी थे साधु । वे भी 31 पिच्छि युक्त।
39 एत्थं च कुंजवण-खेत्त-पणं रहं च रट्ठज्झुजस्स बहुमाण-बहुल्ल-जूहे।
246 :: सम्मदि सम्भवो