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दो साहसे हु सत-वास-तवादि-पुण्णा मग्गाणु गाम-विहरंत-पुणो हु अस्सिं। पंचाल-कुंथलगिरिं जयसिंग आदिं
पच्छा हु अंकलिपुरे पुण ऊदगामं 32॥ सन् 2007 को तपाराधना पूर्ण यह संघ पंचालेश्वर, कुंथलगिरि, जयसिंहपुर कुंजवन आदि के पश्चात् 2008 में अंकलि में आया फिर ऊदगांव में प्रविष्ट कर जाता है।
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संगोल वोर जस भोसध धामणिं च सो आदिसागर मुणिस्स हु जम्मभूमि। तस्सेव पट्ट-तदियं गणिसम्मदिं च
उच्छाइ-अंकलि-जणा बहुमाण कुव्वे ॥33॥ संघ सांगोला, वोरगांव, जशवंतनगर, भोसे एवं धामनी के पश्चात् अंकलीआचार्य आदिसागर को जन्मभूमि को प्राप्त हुआ यहाँ पर उत्साह युक्त जन समूह तृतीय पट्टाधीश आचार्य सन्मतिसागर का बहुमान पूर्वक स्वागत करता है।
34 णेगा मुणी तवधरी वदधारि-बंही दिक्खं णएज्ज भवचक्क विदारणत्थं। दोसाहसे अड हु वासय-ऊदगार्म
जुल्लाइ-सत्तरह-चादुरमास-चिट्टे ॥34॥ आपके संघ में अनेक मुनि तपधारी, व्रतधारी एवं ब्रहाचारी भी थे। वे भवचक्र विदारणार्थ ही दीक्षा लेते हैं। सन् 2008 जुलाई 17 को ऊदगाव में आचार्य ससंघ चातुर्मास हेतु स्थित हुए।
35 भव्वादि-भव्व-गदि-पुण्ण-समाइरोहे सो वीर-सासण-गुरुं च जयंति-पच्छा। सज्झाय-झाण-तव-मुत्ति समित्ति धम्म
पारीसहाण सहमाण सया पसण्णो॥35॥ वे आचार्य श्री भव्यातिभव्य गति पूर्ण समारोह में 19 जुलाई को वीर शासन जयन्ती, गुरु पूर्णिमा को मनाते, फिर ऊदगांव (2008) में स्वाध्याय, ध्यान, तप,
सम्मदि सम्भवो :: 245