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गुण से दुगुने दुगुने करते हुए अंतिम दिन 1024 अर्धपूर्वक सिद्धप्रभु की आराधना होती है।
कल्लाणगं पण-महुच्छव उच्छवं व जाए दिसंबर दुवे छह पेरयंतं। अस्सिं दिवे मुणिसुणील पदं च सूरिं
णिण्णेज्जदे वि मुणिराय मणे हु किज्जे॥8॥ दिसंबर 2 सन् 2006 से लासुर्णे में पंचकल्याणक 6 दिसंबर तक हुआ। इसी दिन मुनि सुनीलसागर को आचार्य पद देने का निर्णय आचार्य श्री के मन में आ गया। किंतु मुनिश्री ने मना कर दिया।
संघे विहारसमए इगसावगो वि आगच्छदे पडिवदेदि गुरू तुमं च। दिक्खेज्ज इच्छगद चिट्ठ-इधे वसेज्जा
किंचिं च पच्छ मणुजो ण हु दिस्सदे सो॥9॥ संघ के विहार करते समय एकश्रावक आता और कहता है-मैं आपको गुरु बनाना चाहता हूँ। तब यहीं बैठो, यही रहो और दीक्षा ले लो ऐसा कहने पर वह कहाँ चला गया पता नहीं चला, न दिखाई दिया।
10 तत्तो हु दुद्ध-भवणे कुणदे विसामो पच्छा गिरिम्हि उवरिं ठिद-देवठाणं। दंसेविदूण डिकसल्ल-पवेस-संघो
सामिद्ध-गाम-किसगस्स इधे विरामे॥10॥ वहाँ से (लासऎसे) विहारकर 'दुग्ध केन्द्र' पर संघ विश्राम करता, वहाँ समीप की पहाड़ी के मंदिर के दर्शन करता, फिर दर्शनकर डिकसल में प्रवेश कर जाता, जहाँ पर एक समृद्ध किसान के निवास में संघ स्थित होता है।
- 11 कूवो त्थि णो व पडिपुच्छदि सो पवुत्ते अस्थि त्थि णत्थि जल-सुक्ख-इमो हु अत्थि। आसीस-पत्त-गुरु एस पुणो णिरेक्खे णीरेहि णीर परिपुण्ण विलोक्क-णंदो॥11॥
238 :: सम्मदि सम्भवो