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धम्मस्स णि? जण माणस-भत्ति भावे लासुण्णए हु चदुमास छवे सहस्से। सो वीरसासण जयंति गुरुं च पुण्णिं
सत्तोववास सह दस्स जुलाइ मासे॥4॥ सन् 2006 के चातुर्मास के प्रसंग पर लासुर्णे के जन मानस भक्ति भाव से वीर शासन जयन्ती एवं गुरुपूर्णिमा को मनाते हैं। इधर आचार्य श्री सात उपवास पूर्वक जुलाई 7 सन् 2006 को यहाँ चातुर्मास स्थापना करते हैं।
सावण्ण-सुक्क दिण-पंचमि दिक्ख सब्भं एलक्कसंत-समभाव जुदो हु अस्सिं। अप्पासु रत्त मुणि-सब्भ-समाहिं पुव्वं
चत्तेदि देह रविवार-अगत्थ ए सो॥5॥ श्रावण शुक्लापंचमी को सभ्यसागर क्षुल्लक से मुनि हुए। सुशांतसागर क्षुल्लक से ऐलक बने। सभ्यसागर आत्मरत समाधि पूर्वक देहत्याग करते हैं। दिन रविवार 13 अगस्त में।
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पज्जूसणे हु समए हु अगत्थमासे सज्झाय-संजम-दहं उववास सूरिं। किच्चा जहे? जणमाणस-वास-आदिं
णिव्वाण-उच्छव सुधम्मि-मई य दिक्खं॥6॥ पर्दूषण पर्व अगस्त (28) में प्रारंभ हुआ। आचार्य श्री दश उपवास, स्वाध्याय एवं संयम करके जन मानस को यथेष्ट उपवास की ओर प्रेरित करते हैं। अक्टूबर 20 को निर्वाण महोत्सव एवं सुधर्ममती क्षुल्लिका दीक्षा को प्राप्त हुई।
7 पारंभदं च सिरि-सिद्ध विधाण चक्कं अटुं गुणं पडिदिणं दुगुणं दुगुण्णं। एगे सहस्स चदुविंस सुअग्घ-पुव्वं
आराहणा हवदि सिद्ध पहुस्स अस्सिं॥7॥ इस लासुर्णे नगर में श्री सिद्धचक्र विधान आरंभ किया गया। सिद्धों के आठ
सम्मदि सम्भवो :: 237