________________
पेठणपवेसो
15
धामण्ण-खेत्त-अमरं पिपिरिं च घोट्टं पच्छा हु पेठणपुरे बहु-माण-पत्ते। सिद्धतसागर-मुणीस इधे हु अग्गे
आमावसे हु सणि-सुव्वद-झाण-कुब्वे॥15॥ धामण गांव, शेवगांव, अमरापुरी, पिपरी, घोटण आदि के पश्चात् आचार्य सिद्धान्तसागर जी अगवानी में पैठण (प्रतिष्ठानपुर) में प्रवेश बहुमान-सम्मान के साथ हुआ। यहाँ मुनिसुव्रतनाथ का प्रति अमावस्या के शनि दिवस पर लोग उनका ध्यान करते हैं।
पाइट्ठणा हु वणवास-खणे हु रामो सुव्वद्दणाध पडिम पडि ठाविएज्जा। गोदावरी वि जल पूरि-णदी विसाला
गामंधणं ढुरकिणं च पवास-पत्तो॥16॥ प्रतिष्ठानपुर में राम वनवास के समय सुव्रतनाथ की प्रतिमा स्थापित करवाते हैं। यहाँ गोदावरी जलपूरित नदी विशाल है। यहाँ से संघ धनगांव आदि होते हुए ढोर किन पहुँचा, वहाँ प्रवास किया। अतिसय-खेत्त-कचणेरो (2007 प्रथम दिन)
17 मग्गो हु संघ विहवो कुण सागदं च चिन्तामणिं च पहुपास सुदंसणं च। गामे इमो अदिसयं कचणेर खेत्तं
भूगब्भ णिस्सिद पहुँ अवलोयदे सो17॥ मार्ग में विभवसागर का संघ आचार्य श्री का स्वागत करता, फिर चिन्तामणि पार्श्वप्रभु के दर्शन को प्राप्त होता। यह संघ कचनेर ग्राम में स्थित अतिशय क्षेत्र के दर्शन करता। यहाँ यह मूर्ती भूगर्भ से निकली थी, उसे संघ देखता है।
240 :: सम्मदि सम्भवो